Book Title: Anekant 1982 Book 35 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 120
________________ "जिला संग्रहालय खरगोन में संरक्षित जैन प्रतिमाएं " मार्गदर्शक : नरेशकुमार पाठक जिला संग्रहालय खरगोन की स्थापना मध्यप्रदेश पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग द्वारा जिला पुरातत्व संघ खरगोन के सहयोग से सन् १९७४ में की गई। यहां पर जिले के विभिन्न स्थानों से प्राप्त लगभग ५५ कलाकृतियों को एकत्रित कर जिलाध्यक्ष कार्यालय खरगोन के सामने के उद्यान में प्रदर्शित किया गया है । संग्रहालय की ये प्रतिमाएं हिन्दू व जैन सम्प्रदाय से सम्बन्धित हैं । जैन सम्प्रदाय से सम्बन्धित ग्यारह प्रतिमाओं का संग्रह है । जिनमें अधिकांशतः खरगोन जिला के प्रसिद्ध जैन तीर्थस्थल ऊन (पावागिरि सिद्ध क्षेत्र) से प्राप्त हुई है। तथा एक बोली ग्राम से इस संग्रहालय को उपलब्ध हुई है । संग्रहित प्रतिमाओं का विवरण इस प्रकार है। चन्द्रप्रभुः संगमरमर के पत्थर पर निर्मित आठवें तीर्थंकर भगवान चन्द्रप्रभु पद्मासन (स० क्र० ३१ ) की ध्यानस्थ मुद्रा में बैठे हुए हैं। सिर पर कुन्तलित केशराशि, कर्णचाप एवं वक्ष पर श्रीवत्स का आलेखन है । चोकी पर भगवान चन्द्रप्रभु का ध्वज लांछन चन्द्रमा अंकित है। दुर्भाग्य से प्रतिमा का प्राप्ति स्थान अज्ञात है । परन्तु यह खरगोन जिले के किसी स्थान से ही मिली होगी । पादपीठ पर १६वीं २०वीं शती ईस्वी की देवनागरी लिपि में लेख उत्कीर्ण है । लेकिन पत्थर के क्षरण के कारण अपठनीय है। मल्लिनाथ: संग्रहालय में ऊन से प्राप्त (सं० क० १२) उन्नीसवे तीर्थंकर मल्लिनाथ की ध्यानस्थ मुद्रा में शिल्पांकित मूर्ति का मुख व वितान भग्न है। चौकी पर उनका शासन देवता, यक्ष, कुबेर एवं खण्डित अवस्था में यक्षी अपराजिता का आलेखन मनोहारी है। लाल बलुआ पत्थर पर निर्मित १३वीं शती की यह प्रतिमा निर्मित के समय अवश्य ही सुन्दर रही होगी । पाश्वाथ: सोप स्टोन पर निर्मित तेइसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ (स० ० ३०) का सिर भग्न है । वक्ष पर श्रीवत्स सुशोभित है । अठारहवीं शती की इस प्रतिमा की कलात्मक अभिव्यक्ति सामान्य है । लांछन विहीन तीर्थंकर प्रतिमाएँ: संग्रहालय में लांछन विहीन तीर्थंकर प्रतिमा से सबधित तीन प्रतिमाएँ सरक्षित है। लाल बलुआ पत्थर पर निर्मित १३वी शती ईस्वी सन् की ये सभी प्रतिमाएँ कन से प्राप्त है । प्रथम (स० क्र० १९ ध्यानस्थ मुद्रा मे अंकित तीर्थंकर के सिंहासन पर अस्पष्ट यक्ष यक्षी प्रतिमा अंकित है । वितान में मालाधारी विद्याधर युगलो का अकन है । दूसरी प्रतिमा में (सं० ऋ० १६) भव्य आसन पर चार लघु तीर्थंकर प्रतिमाएँ अंकित है। जिनमे दो कायोत्सर्ग एवं दो पद्मासन की ध्यानस्थ मुद्रा में अकित है । वितान में विद्याधर युगलो का आलेखन मनोहारी है । तीसरी प्रतिमा (स० क्र० २२) काफी खण्डित अवस्था में है। पत्थर के क्षरण के कारण मूर्ति की कलात्मकता समाप्त हो गई है। अम्बिका: भगवान नेमिनाथ की शासन यक्षी अम्बिका की दो प्रतिमाएँ संग्रहालय में संरक्षित है । प्रथम काले स्लेटी रंग के पत्थर ० ० ४ ) पर निर्मित द्विभुजी प्रतिमा ऊन से प्राप्त हुई है। देवी के हाथो मे बीजपूर तथा गोद में अपने लघु पुत्र प्रियंकर को लिये हुए है। पादपीठ पर दोनों ओर परिचारक एव पूजक प्रतिमाएँ अकित है । ऊन से ही प्राप्त दूसरी प्रतिमा में शासनदेवी अंबिका भव्य ललितासन में बैठी हुई शिल्पांकित है । (स०क्र०१५) देवी के पीछे आम्र लुम्बी का आलेखन है । गोद मे अपने म पुत्र प्रियंकर को लिए हुए है। देवी के आयुध भग्न

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