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विश्व शान्ति में भगवान महावीर के सिद्धान्तों की उपादेयता
कु० पुखराज जैन
आज भौतिक विज्ञान ने बहुत विकास कर लिया है देखें तो वहां भी वर्ग संघर्ष है, विकसित व विकासशील उसकी उपलब्धियो एव अनुसधानो ने विश्व को चमत्कृत देशो मे रस्साकशी है, विषमता बढ़ती जा रही है। कर दिया है। प्रति क्षण अनुसधान हो रहे है जो आज तक आज व्यक्ति ने न्यूट्रान बम और हाइड्रोजन बम बना नही खोजा जागका उसकी खोज में और जो नहीं सोचा लिया है। व्यक्ति स्वय अपनी जाति के सर्वनाश पर तुला उसे सोचने मे व्यक्ति व्यस्त है। आविष्कार का धरातल है, साथ ही ममस्त प्राणी जगत को भी अपने साथ नष्ट अब केवल भौतिक पदार्थों तक सीमित नहीं रहा, वरन् करना चाहता है। मनुष्य का मनुष्य की दृष्टि में कोई अन्तर्मनी चेतना को पहचानना व अध्ययन करना भी मूल्य नही, फैसी भयानक स्थिति है ? आज का विश्व युद्ध उसकी सीमा में आ रहा है। आज की वैज्ञानिक प्रगति की विभीपिका से सत्रस्त है। पता नही किस समय फौजे स्वर्ग की भौतिक दिव्यताओ को पृथ्वी पर उतारने के लिए आमने-सामने आ जाये । आज के युग मे जिस प्रकार के (कटिबद्ध प्रयत्नशील है। पाश्चात्य देशो ने अपनी समृद्धि विनाशक हथियारों का निर्माण हआ है और निरन्तर होता से उन दिव्यनाओ को खरीद भी लिया है।
जा रहा है उमसे भय है कि यदि युद्ध छिडा तो प्रलय का इतना होने पर भी आज का मनुष्य मुखी नही है। झझावात विश्व के बहुत बड़े भाग को अपनी चपेट में ले वह सूख की तलाश में भटक रहा है । आजकल परिवार लेगा । उम स्थिति की कल्पना मात्र ही भय से रोगटे खडा भौतिक साधन सम्पन्न तो देखे जाते है, लेकिन परिवारो कर देने वाली है। के सदस्यो मे परस्पर सद्भावना व विश्वास व्यय होता जा यह तो रहा विश्व का युद्धमय वातावरण । विज्ञान रहा है। व्यक्ति सम्पूर्ण भौतिक सुखो को अकेला ही भोगने ने केवल सामरिक क्षेत्र मे ही उन्नति नही की। विज्ञान ने के लिए व्यग्र है, लेकिन अन्ततः उसे अतृप्ति का अनु- भौतिक क्षेत्र मे इतना विकास किया है कि कहना चाहिए भव ही हो रहा है। ऐसे निराश एव संत्रस्त मानव को। अब आविष्कार आवश्यकता की जननी बन गए । व्यक्ति आशा एव विश्वास की मशाल थमानी है। आज हमे के सामने पदार्थों का ऐमा विश्वव्यापी समूह है जिसे वह मनुष्य को चेतना के केन्द्र में प्रतिष्ठित कर उसके पुरुषार्थ देख नहीं पा रहा, जान नहीं पा रहा, इसलिए कौन-सी व विवेक को जगाना है । उसके मन में जगत के सभी वस्तु का प्रयोग कहा पर हो सकता है यह जानकारी जीवों के प्रति अपनत्व का भाव लाना है मनुष्य-मनुष्य के प्राप्त करने मे बराबर प्रयत्नशील है जिससे वह विज्ञान बीच आत्मतुल्यता की ज्योति जलानी है जिससे परस्पर की प्रगति को अपने जीवन में समाहित कर सके। इन समझदारी प्रेम व विश्वास पैदा हो।।
आविष्कारो ने उसकी आवश्यकताओं मे अभिवृद्धि की आज भौतिकता अग्नि से जीवन मुख्यत पिघ । रहे है विज्ञान ने व्यक्ति के प्रत्येक अभाव को सदभाव में परिहैं। मानवता गल रही है, धर्म जल रहा है । और सस्कृति वर्तित कर दिया है। झलस रही है । शान्ति के नाम पर नर सहार, मित्रता के आज आवश्यकता है सामरिक व्यक्ति को सामाजिक नाम पर शोषण ब स्वार्थ की भावनायें बराबर जड पकड बनाने की जिससे प्राणी जगत का सर्वनाश करने वाला रही है। नैतिकता का पतन जिस गति से हो रहा है वह व्यक्ति प्राणी जगत का कल्याण कर सके वह सामाजिक कल्पनातीत है। राष्ट्रीय समाज, धर्म और सम्प्रदाय को बन कर प्राणी जगत के साथ जी सके। उनके हिताहित के लेकर अशान्त है: हिसक बना हआ है। विश्व के मानचित्र बारे में सोच सके । मानवता का सम्मान कर सके। (क्रमश.)