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कानों में कुण्डल हैं। दाहिने हाथ की वस्तु स्पष्ट नहीं है, दिन भर वच्चे इन मूर्तियों से लिपट-लिपट कर खेलते हैं। दूसरा हाथ नीचे की और है। बाएं ओर एक बैठी स्त्री मकान मालिक इन्हे 'ऋषी-मुनी' कहते हैं तो गांव वाले प्रतिमा है जिसके आसन पर मत्स्य (Fish) का अंकन है। 'उघडा (नंगा) देव' कहते है। इन मूर्तियों के पिछवाड़े ही इसका एक हाथ आसन पर है तो दूसरा हाथ कंधे पर। हेमाडपथी मंदिर की जगती और कुछ स्तंभ बिखरे पड़े हैं, उसके पीछे खड़े पुरुष का वायां हाथ नीचे की ओर है तो जो यहा मंदिर होने के प्रमाण प्रस्तुत करते है। इससे लगकर दायां हाथ सभवत. कमल उठाकर इस ढंग से रखा है कि ही तालाब है, जिसके किनारे भी अनगिनत हिंदू धर्म से तीर्थंकर के हथेली को छूने लगे । प्रतिमा की ग्रीवा त्रिवली संबधित मूर्तिया बिखरी पड़ी है। युक्त है, कान कधे पर लटक रहे है तथा सिर पर बाल आज भी पवनी के इर्द-गिर्द प्राचीन अवशेष यथेष्ट तीन समान जडो में बटे हैं। सिर पर उष्णीष है । सिर मात्रा में देखे जा सकते है। मासल से तीन किलो मीटर के पीछे प्रभावलय का अकन है जिसे चार वर्तुलाकार दूर तेलोता खैरी नामक एक छोटा-सा गाव है जहां प्राचीन रेखाओं से दर्शाया गया है। कधे के दोनो ओर दो उड़ते अवशेष 'कप स्टोन' (Cap stone) देखे जा सकते हैं । हरा विधाघर अकित है जिनके हाथों में सनाल कमल है। इसके तीन-चार किलोमीटर दूर निपानी पिपल गांव नामक दोनों की केश रचना एवं कान के आभूषण एक जैसे है। एक और गाव मे भी इसी प्रकार के अवशेष है। इन दोनो विद्याधर वे मनुष्य होते हैं, जो साधना या तपस्या के के बीच तथा पवनी के चारो ओर बृहदाश्म (Megaithic फलस्वरूप आकाशगामिनी आदि विद्याएँ सिद्ध कन लेते stone C!rocie) वर्तुल देखे जा सकते है। इन दोनों थे। अन्यत्र इन्हें तीर्थकर के मस्तक पर चंवर डलाते हए प्रकारों में शव दफनाए जाते थे। पाया जाता है।
पवनी प्राचीनकाल से ही हीनयान बौद्ध धर्म का एक तीर्यकर के सिर पर छत्रावली है जिस पर गजलक्ष्मी महत्वपूर्ण स्थान रहा है। यहा का जगन्नाथ स्तूप तो आसीन है। इसके दोनों ओर अलकृत हाथी सूड से कुंभ गौतम बुद्ध की अस्थियो पर बनाया गया था। अडम से उठाए लक्ष्मी के सिर पर अभिषेक कर रहे है। लक्ष्मी कुछ रोमन सिक्के भी प्राप्त हुए है, जिससे यहा विदेशी धन-धान्य आदि सर्व प्रदात्री देवी मानी गई है। इसे अभि- धर्म यात्रियों तक के आने का प्रमाण मिलता है। पवनी षेक लक्ष्मी भी कहते है। शुंग काल से ही यह देवी बौद्ध, के परिसर मे अनेक विहार तथा स्तूपों के अवशेष यथेष्ट जैन और ब्राह्मण इन तीनों संप्रदायों को मान्य थी। मात्रा में मिले है। भिवापूर, चांडाला, सातभोकी, कोरंभी तीर्थकर माता के स्वप्नो में अभिषेक लक्ष्मी की भी आदि जगहो पर कई प्राचीन गुहाए है। इतना ही नही गणना है।
यह स्थान प्राचीन व्यापारी मार्ग पर भी था। ग्रीवा की त्रिवली, मुखमंडल की सौम्यता और चम
खमंडल की सौम्यता और चम- बौद्ध धर्म के अवनति के पश्चात इस परिसर में हिंद बिमिलकर इन मानियो तथा जैनधर्म पथियो ने अधिकार कर लिया। मासल से का काल गुप्तोत्तर युग को सिद्ध करते है।
कुछ ही दूर पद्मपूर तथा भडारा में भी जैन अवशेष पाये तीर्थकर की कुल सख्या चौबिस है । आज की विचार जाते है। धारा के अनुसार इनमें केवल तीन को-नेमि, पार्श्व तथा यह मूर्तियां तथा पवनी का प्रदेश अभी तक अप्रचारित महावीर को मत्य मष्टि के परुष होता स्वीकार किया एव अनेक पुरातत्व प्रेमियों, पर्यटको के लिए अनजान है। जाता है।
पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की इस महत्वपूर्ण परिसर के प्रति
उपेक्षा खटकती है। गांवों में इतनी अधिक मूर्तियां पड़ी उक्त तीनो मूतिया लगभग ५० वर्ष पूर्व, घर के आगन हैं कि यहां एक विशाल संग्रहालय एवं दर्शनीय स्थल का में खुदाई करते समय मिली थीं। तब से अभी तक यह रूप दिया जा सके। मूतियां श्री भाणरकर के आंगण की शोभा बढ़ा रही है।
बेसनबाम, नागपुर-४४०००४