Book Title: Anekant 1982 Book 35 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 131
________________ २२ वर्ष ३५, कि०४ में वय तथा जाति-व्यवहार को जानने वाले थे, उन्हें लोक- नामक राजा हुए, जिनकी स्त्री का नाम श्रीमती था । उन बन्धु भगवान् ऋषभदेव ने रक्षाकार्य में नियुक्त किया जो दोनों के भगवान् कुन्थुनाथ उत्पन्न हए, जो तीर्थकर भी करुदेश के स्वामी थे, कुरु, जिनका शासन उन था, वे थे और चक्रवर्ती भी थे। तदनन्तर क्रम-क्रम से बहत से उग्र और जो न्यायपूर्वक प्रजा का पालन करते थे, वे भोज राजाओं के व्यतीत हो जाने पर सुदर्शन नामक राजा हए. कहलाए । इनके अतिरिक्त प्रजा को हर्षित करने वाले अनेक जिनकी स्त्री का नाम मित्रा था । इन्हीं दोनों के सप्तम समययान्स और सोम- चक्रवर्ती और अठारहवें तीर्थकर अरनाथ हुए । तदनन्तर प्रभ आदि कुरुवंशी राजाओं से यह भूमि सुशोभित हो रही अन्य राजाओं के हो चुकने पर इसी वंश मे पदममाल, थी' सुभौम और पद्यरथ राजा हुए । उनके बाद महापद्म हरिवंश पराण के ४५वें पर्व में कुरुवंशी राजाओं की चक्रवर्ती हए । उनके विष्णु और पद्म नामक दो पुत्र हुए। विस्तृत परम्परा का वर्णन हुआ है। तदनुसार शोभा में । तदनन्तर सुपम, पद्मदेव, कुलकीति, कीर्ति, सुकीर्ति, कीति, उत्तर कुरु की तुलना करने वाले कुरुजाङ्गल देश के हस्ति- वसकीर्ति. वासकि. वसुकीर्ति, वासुकि, वासव, वसु, सुवसु, श्रीवसु, बसुन्धर, नापुर (हस्तिनपुर) नगर में जो आभूषणस्वरूप श्रेयान्स और वसुरथ, इन्द्रवीर्य, चित्र, विचित्र, बीर्य, विचित्र, विचित्रवीर्य, सोमप्रभ नामके दो राजा हए थे, वे कुरुवश के तिलक थे, चित्ररथ, महारथ, धृतरथ, वृषानत, वृषध्वज, श्रीव्रत, व्रतभगवान ऋषभदेव के समकालीन थे और दानतीर्थ के नायक . धर्मा, धृतधारण, महासर, प्ररिसर, शर, पाराशर, शरद्वीप, थे। उनमें सोमप्रभ के जयकुमार नाम का पुत्र हुआ। वह द्वीप, द्वीपायन, सुशान्ति, शान्तिभद्र, शान्तिषेण, योजनगंधा यकमार ही आगे चलकर भरत चक्रवर्ती के द्वारा 'मेघ- के भर्ता शन्तनु और शन्तनु के राजा धृतव्यास पुत्र हए । म्वर नाम से सम्बोधित किया गया । जयकुमार से कुरु तदनन्तर धतधर्मा, धतेदय, धुततेज, धतयश, धतमान पत्र हआ , कुरु के कुरुचन्द्र, कुरुचन्द्र के शुभकर और शुभ और धृत हुए।धृत के धुतराज नामक पुत्र हुआ। उसकी कर के धृतिकर पुत्र हुआ। तदनन्तर कालक्रम से अनेक अम्बिका, अम्बालिका और अम्बा नामक तीन स्त्रियां थी, करोड़ राजा हुए और अनेक सागर प्रमाण तीर्थकरी का जो उच्चकुल में उत्पन्न हुई थी। उनमे अम्बिका के धृतअन्तराल काल व्यतीत हो जाने पर धृतिदेव, धृतिकर, राष्ट्र, अम्बालिका से पाण्डु और अम्बा से ज्ञानिश्रेष्ठ विदुर गङ्गदेव, तिमित्र, धृतिक्षेम, सुव्रत, वात, मन्दर, श्रीचन्द्र ये तीन पुत्र हए । भीष्म भी शन्तनु के ही वंश में उत्पन्न और सुप्रतिष्ठ आदि सैकड़ों राजा हुए। तदनन्तर धृतपद्म, हा थे। धतराज के भाई रुक्मण उनके पिता थे और राजधृतेन्द्र, धृतवीर्य, प्रतिष्ठित आदि राजाओं के हो चुकने पर पुत्री गंगा उनकी माता थी। राजा धृतराष्ट्र के दुर्योधन तिदृष्टि, धृतिद्युति, धृतिकर, प्रीतिकर आदि हुए। तत् आदि सौ पुत्र थे, जो नय-पौरुष से युक्त तथा परस्पर एकपश्चात् भ्रमरघोष, हरिघोष, हरिध्वज, सूर्यधीष, सुतेजस, दूसरे के हित करने में तत्पर थे। राजा पाण्डु की स्त्री का पृथु और इभवाहन आदि राजा हुए । तदनन्तर विजय, नाम कुन्ती था। जिस समय राजा पाण्डु ने गन्धर्व विवाह महाराज और जयराज हुए। इनके पश्चात् उसी वंश मे कर कुन्ती से कन्या अवस्था में सम्भोग किया था, उस चतुर्थ चक्रवर्ती सनत्कुमार हुए, जो रूपपाश से खिंचकर समय कर्ण उत्पन्न हुए थे और विवाह करने के बाद आये हुए देवों के द्वारा सम्बोधित हो दीक्षित हो गए थे। युधिष्ठिर, अर्जुन और भीम ये तीन पुत्र हुए । इन्हीं पाण्ड सनत्कुमार के सुकुमार नाम का पुत्र हुआ। उसके बाद की माद्री नामकी दूसरी स्त्री थी। उससे नकुल और वरकुमार, विश्व, वैश्वानर, विश्वकेतु और वृहद्ध्वज नामक सहदेव ये दो पुत्र उत्पन्न हुए। ये दोनों ही पुत्र कुल के राजा हुए। तदनन्तर विश्वसेन राजा हुए, जिनकी स्त्री का तिलकस्वरूप थे और पर्वत के समान स्थिर थे। युधिष्ठिर नाम ऐरा था । इन्हीं के पंचम चक्रवर्ती और सोलहवें को आदि लेकर तीन तथा नकुल और सहदेव ये पांच तीर्थंकर शान्तिनाथ हुए । इनके पश्चान् नारायण, नरहरि, पाण्डव कहलाते ये'। प्रशान्ति, शान्तिवर्द्धन, शान्तिचन्द्र, शशाङ्क और कुरु राजा आदि पुराण में उल्लिखित कुर जनपद-आदि पुराण हए । इत्यादि राजाओं के व्यतीत होने पर इसी वंश में सूर्य में कुरु 'और कुरुजाङ्गल इन दो राज्यों का उल्लेख भाषा

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