________________
मासल को जैन मतियां
-प्रो० प्रदीप शालिग्राम मेश्राम 'मासल' यह भंडारा जिले में पवनी से लगभग १५ तक बहुत बारीकी से मूर्ति के आकार के अनुपात में बनाई किलोमिटर दूर एक छोटा सा गांव है। यहां श्री संपत गई हैं। मोतीराम भाग-भणारकर नामक एक मछेरे के आंगन में पादपीठ दो इंच ऊंचा है, आसन मे कमल का चिन्ह लगभग ५० वर्षों से, तीन जैन मूर्तियां धूप, यर्षा में धूल खा बना है। जो घिस जाने से अभी मद्य चषक जैसा प्रतीत रही अपने उद्धार की प्रतीक्षा कर रही हैं । हरी छटा वाले होता है। यह निश्चित ही कमल है अतः इसे इक्कीसवें काले रंग के पत्थर की बनी यह मूर्तियां कलात्मक एवं तीर्थंकर नेमिनाथ की प्रतिमा कहना उचित होगा। पुरातत्व की दृष्टि से बेजोड़ है। किंतु प्रचार के अभाव में संभवतः यह मुर्ति उपासना हेनु निर्मित की गई थी, इसकी अभी तक पुरातत्व प्रेमियों का विशेष कोई ध्यान आक- वजह से इसकी सुंदरता और सौदर्य बोध पर विशेष ध्यान षित नही कर पाई है। इसमें से दो मूर्तियां जो एक जैसी दिया गया है। दोनों गालो, होठों एव गले को बच्चों ने हैं खड़ी या खड्गासन में है । तीसरी मूर्ति मात्र ध्यान मुद्रा हाथ लगा-लगा कर खुरदरा बना दिया है। शेप पॉलिश में बैठी हैं। इनका नीचे वर्णन प्रस्तुत है।
की स्निग्धता अब भी कायम है। अन्य दोनों मूर्तियां लगध्यान मुद्रा में बैठी मूर्ति पादपीठ सहित २' २" ऊची भग एक जैसी है। दोनो आठ इच चौडे पत्थर पर बनी है है। पादपीठ दो इच ऊंचा है जो आकार में वर्नुलाकार एक २ " और दूसरी २' १०" ऊची है। यह दोनो प्रतीत होता है। ध्यान मुद्रा में बैठी इस मूर्ति के वक्ष प्रतिमाएं सिंहासन पर कायोत्सर्ग या खड़गासन मे अधिक स्थल पर श्रीवत्स चिन्ह बना है। ग्रीवा की त्रिवली, नासाग्र,
____ सुघड़ और सौम्य हैं, जिन्हें घिम कर यथेष्ट चिकना बनाया दृष्टि, मूर्ति के मुखमडल पर शांति और वैराग्य का भाव गया दर्शाते है। कान कंधो पर टिके है, जो महापुरुष लक्षणो सिंहासन मे सिंहयुगल का अंकन सूक्ष्मता और सुन्द में से एक है। भौहें लचीली एवं लंबी हैं। सिर के केश
रता से किया गया है। बीच मे कलश रखा है, जिस पर परम्परागत अंगुष्ठ मात्र कुंचित है जो चार समान जूड़ो में
पात्र ढका है। जैन ग्रंथों में वर्णित लांच्छनो के अनुसार बंटे हैं।
यह मूति १६वें तीर्थंकर मल्लिनाथ की है। श्वेताम्बर प्रस्तत मति का पादपीठ छोटा होने से दोनों आर पथीय इसे स्त्री मानते है तो दिगंबरो के अनुसार यह पांव बाहर निकलते दिखाई देते है। दोनों हाथ एक दूसरे पाष है। के ऊपर रखे हैं। दाहिना हाथ जो ऊपर रखा है में प्रस्तुत प्रतिमा के हाथ लम्बे, घुटनों तक लटक रहे हैं बलाकार चक्र है तथा इसको माध्यमिका टूटी है। हाथ- तथा हथेलियों पर कमल पुष्प या चक्र का अंकन है। मूर्ति
व तथा पेट के मध्य जो शेष जगह है उसमे मूर्ति को पूर्णत: नग्न है और इसकी आंखें वन्द हैं । वक्ष पर श्रीवत्स सोते समय जल संग्रहित न हो इसलिए, नाभी के निचले चिन्ह बना है। सिर पर तीन छत्र है। हिस्से में एक छेद बना है। यह सहजता से दिखाई नहीं सिंहासन के पादमूल में दाए ओर हाथ के नीचे एक देता। इससे होता हुआ जल बिना किसी रुकावट के बाएं छोटी पुरुष प्रतिमा है। इसके एक हाथ में अंकुश सदश पांव से होता हुआ सीधा दाहिने पांव के ऊपर से बाहर कोई वस्तु है, दूसरे हाथ में वर्तुलाकार कोई वस्तु है। निकल जाता है। यह मूर्ति सर्वांग है । मूर्ति का मुख तथा इसके पीछे एक पुरुष प्रतिमा उकेरी है जो तीर्थकर के अंग सौष्ठव अत्यंत आकर्षक एवं प्रभावोत्पादक है, उंगलियां हथेलियों तक पहुंचती है। इस प्रतिमा के कण्ठ में माला,