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१२, बर्ष १५, कि.४
पादपीठ पर दोनों भोर बामरणारी प्रतिमाओं का के दर्शन हो जाते हैं। जिससे मानव का कल्याण होता है। आलेखन आकर्षक है। कालक्रम की दृष्टि से ये दोनों इसीलिए चारों तरफ मूर्तियों वाली प्रतिमाओं को सर्वतोप्रतिमा १३वी शती ईस्वी की है।
भद्रिका की संज्ञा दी गई है । प्रस्तुत सर्वतो-भद्रिका के गोमेद-अम्बिका:
चारों ओर तोर्थकर प्रतिमाओं का अंकन है। जिन्हें लांछन नोकर नेमिनाथ के शासन यक्ष गोमेद, यक्षी अंबिका के अभाव में पहिचानना कठिन है। किन्तु सर्वतोभद्रिका स्थानक मुद्रा में शिल्पांकित यह प्रतिमा ऊन से प्राप्त हुई प्रतिमाओं में चार विशिष्ट तीर्थकरो की प्रतिमाएं अधिकहै। पीछे कल्पवक्ष (आम्र-लम्बी) का आलेखन आकर्षक तर बनाई जाती रही है। यथा ऋषभनाथ, नेमिनाथ.
जा में बीजपर पर दोनों पार्श्वनाथ और महावीर स्वामी । अतएव इस सर्वतोभद्रिका ओर दो लघु जिन प्रतिमाएं एव वृक्ष पर आठ अन्य जिन
की चारों प्रतिमा ऋषभनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ एवं प्रतिमाओं का शिल्पांकन है। १३वी शती ईस्वी की यह प्रतिमा कलात्मक दृष्टि से परमार कालीन शिल्पकला के जिन प्रतिमा वितान अनुसार है।
जिन प्रतिमा वितान से सम्बन्धित इस (सं०क० ४४) सर्वतोभद्रिका:
शिल्पखण्ड में त्रिछत्रावली, अभिषेक करते हुए ऐरावत, चोली से प्राप्त हुई इस प्रतिमा के चारों ओर तीर्थकर दुन्दुभि-वादक एवं कलश लिए हुये विद्याधर युगलों का प्रतिमाओं को अकित किया गया है। (स० ऋ० ५१) इस आलेखन किया गया है। प्रकार की प्रतिमाओं को किमी तरफ देखा जाय तीर्थंकर -केन्द्रीय पुरातत्व संग्रहालय गुजरी महल ग्वालियर
(पृष्ठ ७ का शेष) १०.नं.४३६ वंक चूल कथा श्लोक-१०६ पत्र-५ संस्कृत लिखी गई है, जबकि नागौर सूची में गाथा १७२ है। ११.नं.८९२ होल रेणुका चरित्र पत्र-४४६, अर्थात् सभी रचनाओ पद्य सख्या न्यूनाधिक है। अतः
मिलान करना जरूरी है। इनमें से लब्धि-विधान व्रत कथा का दूसरा नाम 'गौतम स्वामी रास' बतलाया गया है। पद्य संख्या १३२ दी है। लगता है नागोर भण्डार का सम्यक्त्व रास, संभवतः नंबर २३ समकित अष्टांग कथा रास । पहले तो मैंने सोचा डॉ० संवका के लिखित नं० ५५ समकित-मिथ्यात्व रास कि नाम के अनुसार नंबर २३ मागौर भण्डार में जो होगा, जिसकी पद्य संख्या ७० है। खोज करने पर विदित समकित रास है, वही यह होगा पर उसकी पद्य संख्या हुआ कि यह रास "राजस्थान के जैन सत" नामक परिशिष्ट ८२६ बतलायी गई है वह इससे भिन्न ही मालूम देता है में छपा है।
पत्रों में इनके २६ पद्य शायद ही लिखे गये है। उपरोक्त रचनाओं मे २ अर्थात् संस्कृत रास बंकचल ०३० में पुष्पाजलि रास के विवरण में पद्य संख्या व होल-रेणुका चरित्र का लेखक ने ब्रह्म जिनदास के संस्कत १३४ बतलायी है, जबकि नागौर भण्डार सूची में १६१ ग्रंथो मे उल्लेख नही किया है। पर गुजराती या हिन्दी
।नं० ३१ आकाश पंचमी कथा में छन्द संख्या ६४ बत- रचनाओं में उल्लेख है। जिनमे से न० २५ होली राम ना । जबकि नागौर सूची मे गाथा १३० है। नं. ३४ के पद्य १४६ है और नं० २८ बंकचूल रास का विवरण में निर्दोष सप्तमी कथा रास के छन्द की संख्या ८५ लिखी देते हुए लेखक ने लिखा है कि "यह कृति अधरी मिली है जबकि नागौर भण्डार सूची में गाथा १०६ है। नं० ३५ है। इसमें बंकचूल का आख्यान है। जिसमें सम्यक्त्व के अक्षय दशमी रास की छन्द संख्या ८६ है, जबकि नागौर नियमों के पालन से देव गति प्राप्त की गई है। रासका
बार सची में गाथा १११ है। नं० ३६ दशलक्षण व्रत कथा प्रारम्भ वस्तु छंद हैं।" पर वास्तव में सम्यक्त्व के नियमों रास की छन्द संख्या ८२ बतलायी गई है। नागौर सूची का नहीं, कुछ अन्य नियमो के ग्रहण करने का सफल इसमें में नहीं दी है। नं. ३८ अनन्त ब्रत रास में छन्द १२५ बतलाया है। -नाहटों की गवाड, बीकानेर