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अपभ्रंश काव्यों में सामाजिक चित्रण
क्रय-विक्रय सम्बन्धी कई मनोरंजक उदाहरण मिलते धण्णकुमार चरिउ के एक प्रसंग में बताया गया है कि उसने हैं। महाकवि रइधु ने 'हरिवश चरिउ' के द्वारका-दहन बाजार से जो पलंग के पाथे खरीदे थे और घर पर उसकी प्रकरण में बताया है कि जब द्वारका अग्नि की भयकर मा जब उन्हें साफ करने लगी तब उनमे से उसे अनेक लपटो में व्याप्त थी तब कृष्ण एव बलदेव नगर के बाहर कीमती मणि-रत्नो की प्राप्ति हुई साथ ही एक शुभ्र-पत्र चले जाते है । चलते-चलते वे एक बन मे पहुचते है । वहा भी मिला जिसके अनुसार पत्रवाहक को उस नगर का कृष्ण को भूख सताने लगी। बलदेव उनकी व्याकुलता देख राज्य मिलना था। कर तड़प उठते है और उन्हे एक छायादार वृक्ष के नीचे प्रन्थों का प्रतिलिपि कार्य बैठाकर समीपवर्ती किसी नगर से अपने सोने के कड़े के अपभ्र श काव्यो मे ग्रथ प्रणयन का जितना महत्व है बदले में पुआ खरीदकर ले आते है"।
उतना ही महत्व ग्रन्थो की प्रतिलिपियो का भी माना गया 'धण्णकुमार चरिउ' में प्राप्त एक प्रसगानुसार धन्य- है, क्योंकि मुद्रणालयों एवं लिखने सम्बन्धी सुकर-सामग्रियों कमार एक ईधन सहित बैलगाड़ी के बदले में भेड़े खरीदता के अभावो में प्रतिलिपि कार्य बड़ा ही श्रमसाध्य समय है तथा उन्ही भेड़ो के बदले में पुनः पलग के चार पाये साध्य एव धैर्य का कार्य माना गया है। खरीद लेता है। धण्ण कुमार चरिउ मे हो एक अन्य प्रसग धण्णकुमार चरित" में इसीलिए त्यागधर्म के अन्तर्गत के अनुसार धन्यकुमार अपने पिता से ५०० दीनारे लेकर आर्थिक सहायता देने के साधनो में 'प्रथ-प्रतिलिपि को भी व्यापार प्रारम्भ करता है तथा सर्वप्रथम उनसे इंधन भरी स्थान दिया गया है । पुष्पदन्त ने महामात्य भरत के राजएक बैल गाडी खरीदता है।
महल मे ग्रथ प्रतिलिपियों की चर्चा की है" । सोलहकारणमजदूरी के बदले मे वस्तु के देने का उल्लेख मिलता पूजा एव जयमाला में भी कवि र इधू ने ग्रथ प्रणेता एव है। अकृतपुण्य नामक एक मजदूर अपनी मजदूरी के बदले ग्रन्थ के प्रतिलिपिक को समकक्ष रखा है। में चने की पोटली प्राप्त करता है"।
प्रतिलिपिक भी यह कार्य बड़ी श्रद्धा एव अभिरुचि के उक्त प्रसगो से यह निष्कर्ष निकलता है कि
साथ करते थे क्योकि उन्हें यह साहित्य-सेवा भी थी तथा १. वस्तुओ के बदले मे वस्तुओ का क्रय
आजीविका का साधन भी। २. मजदूरी के बदले मे अनाज या अन्य आवश्यक मध्यकालीन समुद्र यात्रा वस्तुओ का प्रदान तथा
अपभ्र श काव्यो से विदित होता है कि मध्यकाल में ३. सिक्को के बदले में वस्तुओ का क्रय ।
विदेशो से भारत के अच्छे सम्बन्ध थे । यातायात के साधनों बेची जाने वाली बाजार की वस्तुओं में मिलावट मे जलमार्ग प्रमुख था । सार्थवाह बड़े-बड़े जहाजों अथवा
बाजारों में बेची जाने वाली अच्छी वस्तुओं में पुरानी नौकाओ में व्यापारिक सामग्रिया भरकर कुंकुमद्वीप, सुवर्णएवं कम कीमत वाली वस्तुओं की मिलावट को इक्की- द्वीप, हसद्वीप, रत्नद्वीप, गजदीप, सिंहलद्वीप आदि द्वीपों में दुक्की चर्चा भी अपभ्रश-काव्यो मे आती है। पउमचरिउ जाकर लेन-देन का व्यापार करते थे। के अनसार जब हनुमानजी किष्किन्धापुरी के बाजार में समुद्री-यात्राओं का विशेष वर्णन करने वाले दो काव्य
उन्होने एक दुकान पर तेल मिश्रित घी प्रमुख है भविसयत्त कहा एव सिरिवाल चरिउ । इन रचदेखा था।
नाओं के कथानक इतने सरस एवं मनोरंजक हैं कि उनकी द्रव्य-सम्पति को सुरक्षित रखने के साधन
लोकप्रियता का पता इसीसे लग जाता है कि विभिन्नकालों सोना, चांदी आदि द्रव्य सम्पत्ति को सुरक्षित रखने के एवं विभिन्न भाषाओ में इन पर दर्जनों रचनाए लिखी आज जैसे साधन बैंक आदि उस समय न थे। अध्ययन गई। करने से पता चलता है कि लोग उसे जमीन या दीवाल महाकवि रइधू ने श्रीपाल की विदेश यात्रा के बहाने में गाडकर या पलग के पायों आदि मे बन्दकर रखतों। यात्रा के लिए अत्यावश्यक सामग्री, विदेशो में ध्यान देने