Book Title: Anekant 1982 Book 35 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 113
________________ ४, वर्ष ३५, कि४ तानाजी मालसुरे नहीं था, जो कि शिवाजी का सर्वाधिक महाराणा राजसिंह प्रथम के समय संघवी दयालदास वीर एवं विश्वस्त सेनापति होते हुए भी कुछ काल के लिए राज्य के प्रधान थे। जिन दिनों सम्राट औरंगजेब के साथ अपने स्वामी का परित्याग करके मुसलमान बन गया था। राजपूतो के इतिहास-प्रसिद्ध युद्ध चल रहे थे उस काल में मुगलों के साथ होने वाले राणा प्रताप के अन्तिम युद्धो मे संघवी दयालदास राणा राजसिंह के दाहिने हाथ और भामाशाह ने चूडावत और शेखावत सरदारो के साथ, प्रधान स्तम्भ इसी प्रकार के थे जिस प्रकार कि महाराणा विशेषकर दिवर की लड़ाई में, प्रमुख भाग लिया था। प्रताप के लिए भामाशाह रहे थे। दयालदास के पिता राणा अमर सिंह के समय में भी २६ जनवरी सन् १६०० महाजन राजू थे जिनके पूर्वज सिसोदिया क्षत्री थे । शांतिई० मे अपनी मृत्यु पर्यन्न, वीर भामाशाह मेवाड़ का प्रधान पूर्ण जैनधर्म में दीक्षित होने के उपरान्त वे वणिको की बना रहा । मरते ममय उसने अपनी पत्नी को यह आदेश ओसवाल जाति मे समाविष्ट हो गए थे । संघवी दयालदास दिया था कि वह उसकी मृत्यु के बाद महाराणा को वह के बीरतापूर्ण एव राजनीतिक गुद्धिमत्तापूर्ण कार्य-कलाप, पोथी सौंप दे जिममे भामाशाह ने मेवाड़ के भूमिस्थ इतिहाम-प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त, उन्होंने राजसमुद्र रजानो का ब्यौरा लिख रखा था और जिनका रहस्य झील के तट पर विपुल द्रव्य व्यय करके श्वेतमर्मर का उसके स्वयं के अतिरिक्त और कोई भी व्यक्ति नही जानता अत्यन्त भव्य आदिनाथ जिनालय निर्माण कराया था। था। डॉ. कानूनगो कहते है कि उम प्रमिद मराठा राज- मेहता अगरचन्द के पूर्वज सिरोही राज्य के देउरावशी नीतिज्ञ नाना फाइनीम के प्रतिपक्ष में यह कितना श्रेष्ठ चौहान शासक थे। एक प्रसिद्ध जैन मंत ने उसमे से एक जैनधर्म में दीक्षित कर लिया था अत. उसके वंशज ओसएवं उदात्त उदाहरण है। नाना फाइनीस ने राजकीय कोप वाल जाति मे समाविष्ट हो गए, जो राजस्थानी जैन का विपुल धन छुपा रखा था और उसे उसने अपने निजी वणिको की एक प्रमुख जाति थी। अगरचन्द्र मेवाड़ के लाभ के लिए ही व्यय किया था और मरते समय उस महाराणा अमरसिंह द्वितीय के प्रधान थे। उनके पश्चात खजाने की विवरण पुस्तिका भी वह विरसे के रूप में। उनके पुत्र देवीचन्द्र राज्य के प्रधान बने । अपनी विधवा को ही सौप गया था। भामाशाह का छोटा भाई ताराचन्द प्रसिद्ध योद्धा था। सेठ जोरावलमल बाफना का परिवार राजपूताना का उसकी शुरवीरता एवं रणकौशल की कीर्ति चहुं ओर फैल धन कुबेर परिवार था । अमेरिका के प्रसिद्ध धनकुबेर गई थी। उस तूफानी युग के किसी भी राजपूत वीर की राकचाइल्ड परिवार से उनकी तुलना की जाती है। इनके अपेक्षा इस जैन वीर ने जीवन का अधिक आनन्द, वैभव पूर्वज मूलतः परिहार राजपूत थे। ब्राह्मण धर्म का परिऔर गौरव के साथ उपभोग किया। अपने निवास स्थान त्याग करके जैनधर्म में दीक्षित होने के कारण उन्होने सदरी में उसने एक विशाल उद्यान के मध्य अत्यन्त सुदर वणिक वृत्ति अपना ली थी और ओसवाल जाति में भवन (बारादरी) और एक बावडी निर्माण कराई थी। सम्मिलित हो गए थे। जब कर्नल जेम्सटाड मेवाड के उक्त बावडी के निकट स्वयं ताराचद की, उसकी चार पोलिटिकल एजेण्ट नियुक्त होकर आए तो उन्होंने तत्कापलियों की, उसकी कृपापात्र खवास की, छ: नर्तकियों की लीन नरेश महाराजा भीमसिंह को यह परामर्श दिया था और सपत्नीक उसके संगीताचार्य की सुन्दर प्रस्तर मूर्तिया कि वे अपने दीवालिया राज्य की साख एवं आर्थिक स्थिति स्थापित है। ऐसा प्रतीत होता है कि इस जैनी ओसवाल का पुनरुद्धार करने के लिए इन्दौर से सेठ जोरावरमल को वनिए ने वैभवपूर्ण जीवन-यापन की कला में उस काल के आमन्त्रित करें। अत. घाटे का सौदा होते हए भी मुगल अमीरो को भी मात दे दी थी। भामाशाह की मृत्यु जोरावरमल ने उदयपुर में अपनी गद्दी स्थापित कर दी। के पश्चात उनके पुत्र जीवाशाह राणा अमरसिंह के प्रधान असहाय महाराजा ने सेठ जी से कहा कि आप मेरे राज्य बने उनके उपरान्त उनके पुत्र अवधराज राणा कर्णसिंह के का समस्त प्रशासकीय एव राजकीय दाय अपनी कोठी से समय में मेवाड राज्य के प्रधान रहे। भुगतान करें और राज्य की समस्त माय आपके यहां जमा

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