Book Title: Anekant 1982 Book 35 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 111
________________ राजस्थान के इतिहास में जैनों का योगदान 0 इतिहासमनीषी, डा. ज्योतिप्रसाद जैन राजस्थान का इतिहास मध्यकालीन भारतीय इतिहास जोधपुर के मुंशी देवीप्रसाद का इतिहास, ५० गुलेरी का एक अत्यन्त महत्वपूर्ण अग है । इस प्रदेश मे उस लग- जी का ग्रंथ, विश्वेश्वरनाथ रेउ का 'भारत के प्राचीन भग एक सहस्र वर्ष के काल मे अनेक राजपूत राज्यवंशों राजवंश' म० म० गौरीशंकर हीराच द्र ओझा का 'राजएव राजपूत राज्यों के प्रभुत्व के कारण ही वह प्रदेश राज- पुताने का इतिहास', आदि ग्रथ राजस्थान इतिहास के प्रताना कहलाया । सामान्य इतिहास के पाठक उनमे से प्रधान साधन है। इन ग्रन्थो मे यद्यपि प्रमुख राजपूत राज्यप्रमुख राजपूत राज्यवशो और राजपूत नरेशो के नामादि वशों एवं रजवाड़ों के आश्रय से ही राजस्थान के ऐतिहाऔर कतिपय कार्यकलापा से ही परिचित होते है और सिक विवरण दिए गए है, तथापि उनसे यह भी स्पष्ट हो उनकी यह धारणा बन जाती है कि राजस्थान का इति- जाता है कि उक्त इतिहास में राजपूतो के अतिरिक्त जैनी हाम राजपूतों का ही इतिहास है, वे ही उस प्रदेश के बनियो, चारण, भाटो, कायस्थो तथा ब्राह्मणो का और इतिहास के एक मात्र निर्माता है। वस्तुतः, राजपूताने में भील, मीना आदि आदिम जातियों का भी बड़ा हिस्सा रवय राजपून एक अल्पसख्यक जाति है और उस प्रदेश की रहा है । सामान्य इतिहास पुस्तको मे अवश्य ही इन राजसंपूर्ण जनसख्या का एक बहुत बटा भाग राजपूतेतर लोग पूतेतर लोगो का प्राय. कोई उल्लेख नहीं रहता, अतः है। राजपूताने की पूर्ण जनसख्या को दो भागों में बाट सामान्य पाठक भी राजस्थान के इतिहास मे इन जातियों सकते है-एक नो सभ्य सभ्रान्त एव अपेक्षाकृत अर्वाचीन के महत्यपूर्ण योगदान के ज्ञान से बचित ही रहते है। निवासी है। इन। गहलोत, चोहान, कछवाहा, राठौर, मध्यकालीन इतिहास के एक माने हुए विशेषज्ञ प्रो० के. होडा आदि वी के राजपूत, बनिये या वैश्य जो प्राय. आर० कानूनगो के लेख 'दी रोल ऑफ नान राजपूत्स ओसवाल, खंडेलवार, अग्रवाल, श्रीमाल, पोरवाल, बघेर- इन दी हिस्टरी ऑव राजपूताना (मार्डन रिव्यू फर्वरी वाल, हमड, नरसिंह राजपुरा आदि हे और अधिकांशतः ५७ पृ० १०५) मे भी राजपूताने के इतिहास मे राजपूतों जैन धर्मावलम्बी रहे है, कायस्थ, चारण या भाट और के अतिरिक्त जिन चारण, वैश्य और कायस्थ तथा भील, वादाण प्रमख है। दुमरे, राजपूताने के आदिम निवासी मीना, मेव, मेढ नामक राजपतेतर जातियों का प्रमुख अधसभ्य जगली, पहाडी, या कृषक जातिया है । इनमे योगदान रहा है, उन पर सक्षिप्त प्र श डाला है। भील, मीने, मेव, जाट, मेढ़ आदि प्रसुख है । राजस्थान के उपरोक्त जातियो मे से चारण या भाट तो राजस्थान इतिहास के निर्माण में इन दोनो ही वर्गों की राजपूतेतर की एक विशिष्ट जाति है और प्रायः उसी प्रदेश में सीमित जातियों ने महत्वपूर्ण भाग लिया है । राजपूताने का इति है। बह जाति राजपूत बुग की एक महत्वपूर्ण एवं दिलहाग इन जातियो का भी उतना ही है, जितना कि स्वय चस्प विशेषता है। राजपतों के साथ उसका चोली-दामन राजपूतो का है। का साथ रहा है । चारण वा भाट राजपूती सभ्यता और जैन धर्मावलम्बी मूना नेणसी की मध्यकालीन 'ख्यात' सस्कृति के अभिन्न अंग रहे है। कायस्थ और वैश्य, सुरजमल मिश्रण का 'वशभास्कर' (१६वी शती ई०) दोनो जातियों की प्रशंसा और प्रतिष्ठा भी खूब हुई है और भाटों और चारणो की विरुदावलियां, जैन पडित ज्ञानचन्द्र निन्दा भी काफी की गई है। अपनी प्रशासकीय एवं व्यापाकी सहायता से रचित कर्नल जेम्सटाड का राजस्थान, रिक बुद्धि के कारण वे अपरिहार्य रहे हैं और भारतवर्ष में

Loading...

Page Navigation
1 ... 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145