Book Title: Anekant 1982 Book 35 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 115
________________ ब्रहम जिनवास की तीन अन्य रचनाएं डा० प्रेमचन्द रांवका का शोधप्रबंध " महाकवि ब्रह्मजिनदास व्यक्तित्व एवं कृतित्व" के नाम से भी महावीर ग्रन्थ अकादमी, जयपुर द्वारा सन् ८० में प्रकाजिन हुआ है। जिसके सम्बन्ध मे मेरा एक लेख 'अनेकान्स' जनवरी-मार्च २ के अंक मे प्रकाशित हो चुका है। अभी-अभी उस नागोर के भट्टारकीय प्राथ-भण्डार की सूची का पहला भाग डा० प्रेमचन्द जैन के सम्बन्धित 'सेण्टर फॉर जैन स्टडीज यूनिवर्सिटी ऑफ राजस्थान' जयपुर द्वारा सन् ८ १ में प्रकाशित हुआ है। इसमें नागौर के उक्त भण्डार की १८६२ प्रतियो की विषय-विभाजित (पृष्ठ ५ का शेषांश) का विवरण नहीं होता, वह तो राजा प्रजा, शामक वर्ग और जनना, संपूर्ण जाति का इतिवृत्त होता है। राजस्थान का इतिहास भी राजस्थान के राजपूतों का ही नही वरन् राजपूतेतर जातियो का भी इतिहास है, जो उसके सास्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक जीवन के साधक एव अंग नही थे और इसमें संदेह नही है कि इन जातियो में राजस्थान की ओसवाल, अग्रवाल, खडेलवाल आदि वैस्य जातियों को मंग से अधिकांशतः जैनधर्मावल थी प्रमुख रही है। आज जबकि मध्यकालीन राजपूत योद्धा एक किस्से-कहानियों की वस्तु रह गया, उसकी दुनिया बिल्कुल उलट-पुलट गई है, राजस्थान से विकसित ये वणिक जातियाँ अपनी साहसिक व्यापारिक प्रवृत्तियों द्वारा राजस्थान की आत्मा को नवीन युग के नवीन वाता वरण मे भी सजीव बनाए हुए हैं। नोट- विशेष जानकारी के लिए देखिए भारतीय ज्ञानपीठ दिल्ली से प्रकाशित हमारी पुस्तकें- 'भारतीय इतिहास एक दृष्टि (डि. स.) तवा प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएं ।' -चार बाग, लखनऊ भी अगर चन्द नाहटा सूची दी गई है। जबकि मूल भण्डार में १५ हजार हस्तलिखित प्रतिया व दो हजार गुटके होने का उल्लेख है अर्थात् समस्त प्रतियो की सख्या को देखते हुए यह करीब दसवें भाग की ही सूची है। प्रकाशित सूचीपत्र को सरसरी तौर से देखने पर बहुत सी असावधानियां भी ज्ञात हुई, जिनके सम्बन्ध में यथावसर प्रकाश में लाया जाएगा। यहां तो केवल 'ब्रह्म जिनदास' की रचनाओं का इस मुभी मे उल्लेख है, उन्ही के सम्बन्ध मे प्रकाश डालते हुए इस शोध-प्रबन्ध में जिन रचनाओ का उल्लेख नहीं हुआ है उन्ही का विवरण प्रकाशित किया जा रहा है। उक्त सूची में ब्रह्मजिनदास' किरण है। इनमें पहले की २ संस्कृत की बतलाई गई है। १. न. ३६८ अनन्तव्रत कथा, गाथा १७२ पत्र ५ हिंदीभाषा २. न. ३६२ आकाश पचमी कथा, गा० १२० पत्र-४ " ३. न. ३६३ अक्षय दशमी व्रतकथा, गा० ३११ पत्र-४ ४. न. ४०८ दशलक्षण कथा, "1 "1 पत्र - ३ ५. न. ४२३ निर्दोष सप्तमी कथा, गा० १०६ पत्र - १५ ६. न. ४३२ पुष्पाजवि रूपा, गा० १६१ पत्र-४ वास्तव में इनकी भाषा गुजराती, राजस्थानी है, पर इस भाषा से हिन्दी अलग है पर बहुत से विद्वान नहीं समझ पाते । की ११ रचनाओं का हिन्दी की एवं अन्तिम "1 अब मै सुगन्ध दशमी कथा जिसका उल्लेख करना छूट गया है, पर नागौर भण्डार सूची मे इसका जो विवरण दिया है, वह मैं नीचे दे रहा हूँ। 1 । । । न. ४११ सुगन्ध दशमी कथा महाह्मजिनदास देशी कागज पत्र संख्या ८ । आकार १३॥ ८॥” दशा सुन्दर पूर्ण भाषा हिन्दी लिपि नागरी ग्रन्थ सख्या- २६०८। रचनाकाल - X। लिपिकाल- आश्विन कृष्णा १० मंगलवार स० १६४५ ।

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