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'अनेकान्त' के जन्मदाता की स्मृति में
'अनेकान्त' और वीर सेवा मन्दिर के जनक, स्वनामधन्य स्व० आचार्य जुगलकिशोर जी मुख्तार 'युगवीर की इसी दिसम्बर मास में मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी के दिन १०५वीं जन्म जयन्ती थी और २२ दिसम्बर को उनकी १४वीं पुण्यतिथि थी। वर्तमान शती के इस महापुरुष के ६१ वर्ष के दीर्घ जीवनकाल का बहुभाग, साधिक ७० वर्ष, जैन-धर्म-संस्कृति साहित्य-समाज की एकनिष्ठ सेवा मे व्यतीत हुआ । इस सम्पादकाचार्य ने, विशेषकर 'अनेकान्त' के माध्यम से, जैन पत्रकारिता को अत्युच्च स्तर प्राप्त कराया । इस समालोचना सम्राट की साहित्य-समीक्षाएं निर्भीक, विस्तृत, तलस्पर्शी तुलनात्मक एवं विश्लेषणात्मक होने के कारण अद्वितीय होती थीं। पुरातन साहित्य की शोध-खोज के क्षत्र मे मुख्तार सा० ने अभूतपूर्व मान स्थापित किये। वह उच्चकोटि के ग्रन्थ-परीक्षक, टीकाकार एवं व्याख्याकार भी थे और समाजसुधार के उद्देश्य मे उन्होंने अनेकों सुविचारित एवं उद्बोधक लेख-निबन्धादि भी लिखे । वह सुवि भो थे और उनकी 'मेरी भावना' तो अमरकृति बन गई तथा बच्चे-बच्चे की जवान पर चढ़ गई। पुरातन आचार्यों की कृतियों की खोज एवं शोध तथा प्रकाशन की दिशा में उनके प्रयास अत्यन्त महत्त्वपूर्ण रहे । 'पुरातन जैन वाक्य सूची', 'जंनग्रन्थ प्रशस्ति सग्रह', 'जैन लक्षणावला', जैन शास्त्र भंडारों की ग्रन्थ सूचियां प्रभूति उनके द्वारा नियोजित एवं सम्पादित सन्दर्भग्रन्थ शोधार्थियो के लिए अतीव उपयोगी रहे है और रहेंगे । प्रात स्मरणीय स्वामी समन्तभद्राचार्य के मुख्तार साहब अनन्य भक्त थे और उनके साहित्य के तलस्पर्शी अध्येता एवं व्याख्याता थे। राष्ट्रीय चेतना के प्रति सजग रहने के कारण उन्होंने सदेव शुद्ध खादी का प्रयोग किया ।
'अनेकान्त' और 'वीर सेवा मन्दिर' अपने इस साहित्य तपस्वी जनक के सजीव स्मारक है। स्व० मुख्तार सा० की अप्रकाशित कृतियों के प्रकाशन तथा प्रकाशित किन्तु अप्राप्य कृतियों के पुन प्रकाशन की आवश्यकता है। श्रद्धयार सा० को उपलब्धियां एवं सेवाएं अविस्मरणीय है ।
हम उनकी इस १०५वी जन्म-जन्ती एव १४वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में उनके प्रति अपनी तथा वीर सेवा मन्दिर एवं अनेकान्त परिवार को आर से विनयावनत स्मरणाञ्जलि अर्पित करते हैं । ज्योति निकुञ्ज, --डा० ज्योति प्रसाद जंन
चारबाग, लखनऊ
अपनी बात
'अनेकान्त' के वर्ष ३५ की अन्तिम भर प्रस्तुत करते हुए हमें सन्तोष है कि सभी प्रसंगों में 'अनेकान्त' का स्वागत किया गया है--कई सर हना सूचक संदेश भी मिलते रहे है जिसका समस्त श्रेय सहयोगी - सम्पादक मंडल, विद्वान् लेखक, प्रकाशक एवं संस्था की कमेटी को जाता है - सम्पादक तो भूलों के लिए क्षमा याचक और निमित्त मात्र है। कई प्रसंग ऐसे भी आते हैं जिनमें लेखनी फूंक-फूंक कर चलानी पड़ती है फिर भी स्खलित हो जाता है । पाठक और संबंधित महानुभव इसके लिए क्षमा करें ।
जिनेन्द्र देव की आराधना हमें शक्ति दे कि हम भविष्य में भी बिना किसी पक्षपात के वस्तुस्थिति का दिग्दर्शन कराने में समर्थ रह सक और 'अनेकान्त' अधिक से अधिक उपयोगी बन सभी को सुख-समृद्धि का स्रोत बना रह सके ।
सम्पादक