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जरा सोचिए !
१. क्या कोई इस योग्य है ?
अब साक्षात् अरहंत नही, मिद्धों तक मेरी पहुच नहीं,
साधु मुझे मिलेंगे कहाँ ? धर्म मेरे साथ है और धर्मात्मा दुखी बहुत देखे, अभावग्रस्त भी मिले, पर उन जैसा .
जनी की खोज में है। अनूठा और बात का धनी आज तक न देखा। लाठी के
मैने कहा-बाबा, ऐसी कौनसी बात है आप दुखी न सहारे, चिथडो से आच्छादित, कपर झुकी, मुख पर झुर्रियाँ
हो। अभी तो जैनी लाखो की संख्या में जिन्दा है-आपकी फिर भी स-तेज । सहसा मेरी ओर बढ़े और दीवार के
व्यवस्था बन जाएगी। सहारे मेरे पास ही बैठ गए.---मौन ।
बाबा ने कहा-बेटा, जिन्हें तुम जैनी कह रहे हो, मैंने पूछा-बाबा क्या बात है, दुखी से दिखाई देते उन्हें मेरी और जिनेन्द्रदेव की आँखो से देखो-शायद मैं हो । क्या कोई कष्ट है या कुछ आवश्यकता है ? बताओ। ही तो भ्रम मे नही ! मुझे तो अष्टमूलगुणधारी दाता
बोले-बेटा, क्या कहू ? मेरी मांगने की आदत नहीं, नजर नही आते । वे आगे बोने-दातारों में कितने है जो मैं जैनी हूं। फिर कैसे मागू और किससे मांगू ? क्या कोई मद्य-मांस-मधु के त्यागी है, कितने हैं जो अहिंसा, सत्य, इस योग्य हैं जो मुझे कुछ दे सके, और जिससे मै ले सकू? अचौर्य, ब्रह्मचर्य और परिग्रहपरिमाण व्रतों को निरति चार
मैंने कहा-कोई बात नही । आवश्यकता पड़ने पर पालते है ? या जिनके अनछने जल और रात्रि भोजन का सभी मांगते है। फिर देने वालो की कमी भी तो नही। त्याग है ? देव दर्शनादि आवश्यको के पालक कौन हैं? लोग आज भी हजारो लाखो की सख्या मे देते है। आप बाबा की बात सुन कर मैने दूर तक सोचा। मेरी कहिए तो? आपका वचन यथाशक्ति पूरा कराने का प्रयत्न दृष्टि मे ऐसा व्यक्ति नही आया जो जिनेन्द्र और बाबा की करूँगा।
परिभाषा में जैन हो और जिससे बाबा की कुछ सहायता वे बोले-बहुत दिनो की बात है। किसी पहुचे हुए कराई जा सके। फिर भी मैंने बाबा से कहा-बाबा, सन्त ने मुझे बताया था कि ससार में किसी से कुछ मत ऐसे लोग होगे जरूर । मैं तलाश करके बताऊंगा। मांगना । यदि मागना ही हो तो चार की शरण जाना-- बाबा ने उत्तर दिया--यदि कोई मिले तो उससे कुछ 'अरहते सरणं पवज्जामि, मिद्धे सरण पवज्जामि, साहू सहायता मैंगा कर रख लेना मै फिर हाजिर हो जाऊँगा। सरण पवज्जामि, केवलि पण्णत्त धम्म सरण पवज्जामि।' इतना कह कर बाबा अन्तर्धान हो गए। अर्थात अरहत, सिद्ध, साधु और धर्म की सरण जाना । यदि मैं अवाक रह गया ? इतना कठोर नियम-पालक । अधिक आवश्यकता पड जाय तो किती जैनी (मद्य-मास- धन्य है ऐसे लौह पुरुष को। मधु त्यागी और अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और परिग्रह- जरा सोचिए ! उक्त परिभाषा मे गभित किसी परिमाण व्रतो के निरतिचारपालक) की सहायता ले निरतिचार जैनी को और उसका नाम पता दीजिए ताकि लेना-वह भी तुम्हारा मनोरथ पूरा कर सकेगा। जरूरत पड़ने पर बाबा के लिए कुछ सहाय। मगाई जा
बाबा ने आगे कहा-जब मैं समर्थ था और मेरे हाथ- सके। पांव चलते थे तब मिहनत मजदूरी करके न्याय की कमाई से गुजारा चलाता रहा। जो बचता था वह जोड़ता रहा, २. धर्म संस्थानों का रजिस्ट शन क्या है? वह भी अब पूरा हो गया। ये तो तुम जानते ही हो कि धर्म और धर्म-संस्थाएँ स्वय में ऐसे केन्द्र है जो स्वयं न्यायपूर्वक अजित धन से किसके कोठी और महल बने है ही मानवो का रजिस्ट्रेशन करते हैं इनके आश्रितों को और कौन लाखो-करोड़ों का धनी हुआ है ?
अन्य किसी लौकिक रजिस्ट्रेशन की आवश्यकता नहीं