________________
संग्रहालय, ऊन में संरक्षित जैन प्रतिमाएँ
- नरेशकुमार पाठक
ऊन पश्चिमी निभाड़ मे जैन मूर्ति कला एवं स्थापत्य कला का प्रमुख केन्द्र रहा है। यहां प्रसिद्ध सुवर्णभद्र तथा अन्य तीन संतों को नमन पर जिन्होंने चेलना नदी के तट पर स्थित पावागिरि शिखर पर निर्माण प्राप्त किया था।' सग्रहालय में कुल नौ जैन प्रतिमाएं हैं। ये सभी कलाकृतियां हल्के काले रंग के पत्थर पर निर्मित है। कलाक्रम के आधार पर १२वी १३वी शती की हैं एवं ऊन के खण्डहरों से प्राप्त
शान्तिनाथ :
पद्मासन मुद्रा में निर्मित शान्तिनाथ का कमर से नीचे का भाग प्राप्त हुआ है। पैरो पर रखा हुआ दाहिना हाथ भी खडित है। पादपीठ पर मगवान शान्तिनाथ का ध्वज चिह्न हिरण तथा शखाकृतियो के मध्य में मूर्ति का स्थापना लेख उत्कीर्ण है । लेख का पाठ इस प्रकार है
सवत् १२१२ वर्षे देवचंद्र सुत (श्री) पालः प्रणमीत नित्य... पार्श्वनाथ:
तेईसवें तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा पद्मासन मे निर्मित संग्रहालय की जैन प्रतिमाओं मे सबसे सुन्दर और आकर्षक प्रतिमा है। मूर्ति के सिर पर कुन्तलित केशराशि का आलेखन है। वक्ष पर 'श्री वत्स' चिह्न सुशोभित है। पैरो के नीचे भाग में प्रभावाली नागफणमौलि भग्नप्राय है। अलकरण उच्च स्तरीय है। लांछा विहान तोर्थकर प्रतिमाएँ:
यह तीर्थकर प्रतिमा पद्मासन मुद्रा में निर्मित है। पत्थर के क्षरण के कारण प्रतिमा की कलात्मकता नष्ट हो गई है। गोमुख ८क्ष:
एक शिल्पखण्ड पर गोमुख यक्ष का शिल्पांकन है। बाए पार्श्व मे चामरधारी और दाएँ पार्श्व मे गज, सिंह एव व्यालाकृतियो का आलेखन मनोहारी है। अम्बिका :
भगवान नेमिनाथ की शासन यक्षी अम्बिका की यह प्रतिमा आशाधर और नेमिचन्द्र द्वारा वर्णित प्रतिमा लक्षणों के अनुरूप है जिनमें अम्बिका त्रिभग मुद्रा में शिल्याकित है। जो अपनी दाहिनी गोद में प्रियंकर को लिए है। बाई ओर की खडी प्रतिमा द्वितीय पुत्र शुभकर की है। दाए चामरधारी खडा है। चामरधारी के हाथ व पैर एवं मुंह भग्न अवस्था में हैं। अम्बिका, पारम्परिक आभूषणों से कानो में कुण्डल, गले मे माला बाजूबन्ध आदि से युक्त है। ये आलेखन आंशिक रूप में दिखाई दे रहे हैं। यह प्रतिमा निर्मित के समय काफी सुन्दर रही होगी।
(शेष पृष्ठ ३२ पर) १. आधुनिक इतिहासकार ऊन के पास बहने वाली नदी को चेलना नदी मानते है तथा पावागिरि को
आधुनिक ऊन से समीकृत करते हैं। २. सम्भवत: इस प्रतिमा का कमर से ऊपर का भाग इन्दौर संग्रहालय मे सरक्षित तीर्थंकर प्रतिमा का
ऊर्ध्व भाग होना चाहिए जो ऊन से प्राप्त हुआ है। ३. इन्दौर व विदिशा संग्रहालय में भी इस प्रकार की स्थानक अम्बिका की प्रतिमा संरक्षित है।