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जन और यूनानी परमाणुवार। एक तुलनात्मक विवेचन तत्त्वार्थाधिगम सूत्र भाष्य मे परमाणु को कारण ही परमाणु स्यात् कार्य है क्योकि स्कन्ध के भेदन करने ऐसा कहा गया है। भट्ट अकलंकदेव कहते है कि परमाणु से उत्पन्न होता है और वह स्निग्ध, रूक्ष आदि कार्यभूत को 'कारणमेव' अर्थात् 'कारण ही है। ऐसा मानना ठीक गुणों का आधार है। नहीं है क्योंकि परमाणु एकान्त रूप कारण ही नही है परमाणु से छोटा कोई भेद नही है इसलिए परमाणु बल्कि कार्य भी है।" उमास्वामी ने स्वय बतलाया है कि स्यात् अन्त्य है। यद्यपि परमाणु मे प्रदेश भेद नहीं होता परमाणु स्कन्धों के टूटने से बनते है। अतः परमाणु है, लेकिन गुण भेद होता है, इसलिए परमाणु स्यात् कथंचित् कारण और कथंचित् कार्य स्वरूप है ।
नान्त्य है। (२) परमाणु नित्य और अनित्य स्वरूप है
परमाणु सूक्ष्मरूप परिणमन करता है इसलिए वह कुछ जैन, वैशेषिक और ग्रीक दार्शनिकों ने परमाणु स्यात् सूक्ष्म है। को एकान्त रूप से नित्य ही माना है। भट्ट अकलंक कहते परमाणु में स्थूल कार्य उत्पन्न करने की योग्यता होती है कि परमाणु को सर्वथा नित्य मानना ठीक नहीं है क्योकि है। अत: परमाणु स्यात् स्थूल है। स्नेह आदि गुण परमाणु में विद्यमान रहने के कारण परमाणु द्रव्य रूप से नष्ट नही होता है इसलिए वह परमाणु अनित्य भी है। ये स्नेह, रस आदि गुण परमाणु स्यात् नित्य है।। मे उत्पन्न विनष्ट होते रहते है। परमाणु द्रव्य की अपेक्षा परमाणु स्यात् अनित्य भी है क्योकि वह बन्ध और नित्य और स्नेह-रूक्ष, रम, गध आदि गुणो के उत्पन्न- भेद रूप पर्याय को प्राप्त होता है और उसके गुणो का विनष्ट होने की अपेक्षा अनित्य भी है।" इसलिए परमाणु विपरिणमन होता है। को सर्वथा नित्य कहना ठीक नही है। दूसरी बात है कि अप्रदेशी होने से परमाणु मे एक रस, एक वर्ण और परमाणु परिणामी होते है। कोई भी पदार्थ अपरिमाणी दो अविरोधी रस होते है, अनेक प्रदेशी स्कन्ध रूप परिमणन नही होते है ।" इसलिए परमाणु कथचित् अनित्य भी है। करने की शक्ति परमाणु मे होती है, इसलिए परमाणु अनेक
(३) परमाणु सर्वथा अनादि नही है--परमाणु को रसो बाला भी है। कुछ दार्शनिक अनादि मानते हैं, अकलंकदेव ने इस कथन इस प्रकार अकलंकदेव भट्ट ने अनेकान्त प्रक्रिया के का खंडन किया है उनका कहना है कि परमाणु को सर्वथा द्वारा परमाणु का लक्षण निर्धारित किया है ।१८ अनादि मानने से उससे का उत्पन्न नही हो सकेगा। यदि जैन परमाणुवाद की विशेषताएं और ग्रोक एवं अनादिकालीन परमाणु से नघात आदि कार्यों का होना वैशेषिक परमाणवाद से उसकी तुलना : माना जायगा तो उसका स्वभाव नष्ट हो जायगा। अत: उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर जन-परमाणवाद कार्य के अभाव मे वह कारण रूप भी नही हो सकेगा। की निम्नाकित विशेषताए उपलब्ध होती हैअत. परमाणु अनादि नही है। दूसरी बात यह है कि १. जैन-दर्शन में परमाणु एक भौतिक द्रव्य माना अण भेद पूर्वक होते है, ऐसा तत्वार्थसूत्र में कहा गया है। गया है। भौतिक द्रव्य जैन दर्शन में पुद्गल कहलाता है।
(४) परमाणु निरवयव है–भट्ट अकल देव ने भी इसका मूल स्वभाव सड़ना-गलना और मिलना है। परमाण परमाणु को निरवयव कहा है क्योकि उगमे एक रम, एक भी पिंडो (स्कन्वो) की तरह मिलते और गलते है। भट्ट रूप और गंध होती है। अत. द्रव्याथिक नय की अपेक्षा अकलंकदेव ने परमाणु को पुद्गल द्रब्य सिद्ध करते हुए ही अकलंकदेव ने परमाणु को निरत्रयव बतलाया। कहा हैकि गुणो की अपेक्षा परमाणु में पुद्गलपने की सिद्धि ___भट्ट अकलकदेव ने अनेकान्त सिद्धान्त के आधार पर होती है। परमाणु रूप, रस, गन्ध और स्पर्श से युक्त होते परमाणु का स्वरूप प्रतिपादित किया है। परमाणु से है, उनमें एक, दो, तीन, चार, सख्येथ, असंख्येय और द्वयणुक आदि स्कन्धों की उत्पत्ति होती है इसलिए परमाणु अनन्त गुणरूप हानि-वृद्धि होती रहती है। अतः उनमें भी स्यात् कारण है।
पूरण-गलन व्यवहार मानने में कोई विरोध नही है।