Book Title: Anekant 1982 Book 35 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 92
________________ १८, वर्ष ३५, कि०३ अनेकान्त हैं, शब्द का कारण है स्वयं शब्दरहित है, और स्कन्धों से आदि है, वही मध्य और वही अन्त है।" जो भिन्न द्रव्य है वह परमाणु कहलाता है। भट्ट अकलंकदेव : () जो स्वयं ही आदि है, स्वयं ही अत है, चक्षु परमाणु के स्वरूप का विवेचन करते हुए सर्वप्रथम आदि इन्द्रियो के द्वारा जिसे नही ग्रहण किया जा सकता है अकलंकदेव ने तत्वार्थवात्तिक मे परमाणु की सत्ता सिद्ध और जो अविभागी है, वह परमाणु कहलाता है।' करना आवश्यक समझा है। (च) जो पृथ्वी आदि चार धातुओं का कारण है वह (१) परमाणु अप्रदेशी होते हुए भी खर-विषाण की कारण परमाणु और जो स्कन्धों के टूटने (अविभाज्य अश) तरह अस्तित्वहीन नही है क्योकि अप्रदेशी कहने का अर्थ से बनता है, वह कार्य परमाणु कहलाता है। प्रदेशो का सर्वथा अभाव नहीं है अप्रदेशी का अर्थ है कि प्राचार्य उमास्वामी : परमाणु एक प्रदेशी है। जिसके प्रदेश नहीं होते है उनका उमास्वामी ने तत्वार्थसूत्र में अनेक प्रदेश रहित द्रव्य अस्तित्व नही होता है। जैसे-खरविषाण । परमाणु के को अर्थात जिसके मात्र एक प्रदेश होता है उसे अणु एक प्रदेश होता है इसलिए उसका अस्तित्व है।" कहा है। परमाणु की सत्ता सिद्ध करने के लिए दूसरा तर्क यह (ख) अणुओ की उत्पत्ति स्कन्धों के टूटने से होती है।" दिया है कि जिस प्रकार विज्ञान का आदि, मध्य और श्वेताम्बरमत में मान्य उमास्वाति ने अपने भाष्य मे अन्त नही होता है फिर उसकी सत्ता सभी स्वीकार करते कहा है कि परमाणु आदि मध्य और प्रदेश से रहित है उसी प्रकार आदि, मध्य और अन्त रहित परमाणु की होता है।" भी सत्ता है। अत आदि मध्य और अन्त रहित परमाणु (घ) भाष्य मे यह भी कहा गया है कि परमाणु की सत्ता न मानना ठीक नहीं है।" कारण ही है, अन्त्य है, (उसके अनन्तर दूसरा कोई भेद । (३) परमाणु के अस्तित्व सिद्ध करने के लिए तीसरा नही है)। सूक्ष्म है, स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण गुणवाला है, कारण दिया है कि परमाणु की सत्ता है क्योकि उसका कार्यलिंग है अर्थात परमाणओ के कार्यों को देखकर उसके कार्य दिखलाई पड़ता है। कार्य दिखलाई पडता है। शरीर, इन्द्रिय, महाभूत आदि अस्तित्व का बोध होता है।" परमाणु के कार्य है। क्योकि परमाणुओ के सयोग से उनकी (ङ) परमाणु अबद्ध है अर्थात् वे परस्पर मे अलग स्कन्ध रूप मे रचना हुई है। कार्य बिना कारण के नही अलग असंश्लिष्ट अवस्था में रहते है।" होता है। यह सर्वमान्य सिद्धान्त है। अत कार्यलिंग से पूज्यपादाचार्य : कारण के रूप मे परमाणु का अस्तित्व सिद्ध होता है।" तत्वार्थसूत्र के सर्वप्रथम टीकाकार आचार्य पूज्यपाद ने तत्वार्थधिगम-भाष्य में भी यह तर्क दिया गया है। सर्वार्थसिद्धि नामक तत्वार्थसूत्र की टीका से परमाणु की इस प्रकार भट्ट अकलंकदेव ने परमाणु का अस्तित्व निम्नाकितपरिभाषा दी है । सिद्ध किया है। ग्रीक और वैशेषिक-दर्शन में परमाणु की (क) अणु प्रदेश रहित अर्थात् प्रदेश मात्र होता है।" स्वतन्त्र सत्ता नहीं सिद्ध की गई। क्योंकि अणु के अतिरिक्त अन्य कोई भी ऐसी वस्तु नही है जो अणु से भी अधिक अल्प परिमाण वाली अर्थात् जहां भट्ट अकलंकदेव ने पूज्यपादाचार्य का अनुकरण छोटी हो।" अत. पूज्यपाद ने प्रदेश और अणु को एकार्थक करते हुए परमाणु के स्वरूप का विवेचनकिया है," वहीं माना है।" उन्होने श्वेताम्बर जैन सम्प्रदाय मे मान्य तत्वार्थाधिगम (ख) प्रदेशमात्र मे होने वाले स्पर्शादि पर्याय को सूत्र के भाष्य में दिया गया परमाण के स्वरूप का उत्पन्न करने की सामर्थ्य रूप से जो अयन्ते अर्थात-शब्दो निराकरण भी किया है जो यहाँ प्रस्तुत हैके द्वारा कहे जाते है वे अणु कहलाते है।" (१) परमाणु कथचित् कारण और कथंचित कार्य (ग) अणु अत्यन्त सूक्ष्म है। यही कारण है कि वही स्वरूप है

Loading...

Page Navigation
1 ... 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145