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१६, वर्ष ३५ कि०३
अनेकान्त
दूत :
'सप्ताग राज्य' कहलाता है। एव कार्यारम्भ का उपाय, होने तक उसकी माता प्रतिनिधि के रूप में कार्य करती थी।' पुरुष तथा द्रव्य-सम्पत्ति, देश-काल का विभाव, विघ्नप्रतिकार एवं कार्यसिद्धि रूप पंचाग मन्त्री का होना
शासन : बताया है कवियो ने इनके विश्लेषण प्रस्तुत नही किये है।
राजतन्त्रीय व्यवस्था होने पर भी अमरकंकापुरी के राजा पद्मनाथ के भ्रष्ट-आचरण निकल जाने पर प्रजा
द्वारा राज्यच्युत किये जाने का भी उल्लेख मिलता है।' अपभ्र श-साहित्य मे दूतो के उल्लेख अधिक आए है।
शासन का कार्य यद्यपि राजा ही करता था, किन्तु कभीइसका कारण यह प्रतीत होता है कि उस युग मे युद्धो की
कभी उसे जनता की भावना का भी ध्यान रखना पड़ता। भरमार थी और युद्ध के पूर्व दूतो के माध्यम से समस्या
भविसयत्तकहा के एक प्रसगानुसार राजा भूपाल जब सुलझाने का प्रयास किया जाता था। दूतो की असफलता
बन्धुदत्त एव उसके पिता धनपति को कारागार में डाल युद्धो के आह्वान की भूमिका बनती थी।
देता है तब दूत उसे आकर समाचार देता है—घर-घर मे
कार्य बन्द हो गया है, नर-नारी रुदन कर रहे हैं । बाजार अध्ययन से विदित होता है कि इन कवियों ने प्राय मे लेन-देन ठप्प है तथा आपकी मुद्रा का प्रचलन भी बन्द शासनहर नामक दूत के ही अधिक उल्लेख किये है। वह है ? अन्त मे राजा को उसे छोड़ना पड़ता है।' घोडे आदि वाहनो पर सवार होकर शत्रु राज्य की ओर
व्रत-त्यौहार : प्रस्थान करता था। उसमे प्रत्युत्पन्नमनित्व का होना अत्यावश्यक था । वह शत्रु देश के वन रक्षक, नगर निवासिनो
व्रत-त्यौहार मानवजीयन की भौतिक एव आध्यात्मिक से मित्रता रखता था। शत्रु राजा के दुर्ग र ज्यमीमा,
समृद्धि के प्रतीक है। जीवन को एक रस जन्य विराग एव
निराशा से दूर रखने के लिये इनकी महती आवश्यकता आयु और राष्ट्र रक्षा के उपायो से वह सम्पररूपेण परिचित
है। अभ्र श-साहित्य में इनके पर्याप्त उल्लेख मिलते है। रहता था।
ऐसे व्रत त्यौहारो मे करवा चौथ, नागपचमी, गौरीतीज, राज्य का उत्तराधि. रो :
शीतलाष्टमी, सुगन्ध दशमी, मुक्तावली, निर्दुखसप्तमी, दुग्ध
__ एकादशी आदि व्रतो का नाम उल्लेखनीय है ।' राज्य के उत्तराधिकारी के निर्वाचन के सम्बन्ध में स्पष्ट सिद्धान्त नही मिलते । राजतन्त्रीय व्यवस्था में राजा इसी प्रकार विशेष अवसरों पर विविध पूजाओं के का बड़ा पुत्र ही राजा का उत्तराधिकारी समझा जाता भी उल्लेख आए है जिनमे से कुछ के नाम इस प्रकार हैथा। सर्वदा पट्टरानी का पुत्र ही राज्याधिकारी होता था। गौरीपूजा, गगापूजा, दूर्वादलपूजा, वटवृक्षपूजा, चन्द्रग्रहण वयस्क पुत्र के अभाव मे शिशु अथवा गर्भस्थ बालक को पूजा, छठपूजा, द्वादशीपूजा, नन्दीश्वरपूजा, श्री पचमीपूजा, उत्तराधिकारी घोषित कर दिया जाता था और उसके योग्य तपवमी पूजा आदि ।
(क्रमश) १. उपरिवत् । पृ० ४६१
पृ० २७६ से उद्धृत। २. सुकोसल० ४७ ।
५. अप्पसवोह० २।२५। ३. हरिवंस० १२।४ ।
६. अप्पसंवोह २।१३। ४. भविसयत्त पृ०७०, अपभ्रंश भाषा और साहित्य