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पचास वर्ष पूर्व-दो मौलिक भाषण भावी नवयुवक सुधारको भारत की पुरानी रिवाजों समझ लिया है। और अध्यात्मिकता' की निन्दा न करो। व्यर्थ की नयी मैं आपसे फिर प्रार्थना करती हैं कि आप अपने राष्ट्र बातें निकाल कर झगड़ा पैदा करने से भारतवासियों में के लिये अपने पूज्य नेताओ के लिये, राजा अग्रसेन के लिये, कभी एकता नहीं हो सकती। आज कल वाह्य सुधारकों ने अपनी भावी सन्तानों के लिये, अपने लिये, और मेरे लिये पुरानी बातों को चाहे वे बुरी हों या अच्छी मिटाना और खादी पहनने का व्रत लेवें। उनकी जगह नयी बातें निकालना ही एक महत्व का काम
(पृष्ठ १६ का शेषांश) १६. तत्त्वार्थवातिक प्र० भाग संपादक प्रो० महेन्द्रकुमार २२. णियमवयणिज्जसच्चा सवनया परवियालणे मोहा । ___न्यायाचार्य हिन्दी सार पृ० ४२०-४२१
ते उण ण दिट्ठसमओ विभमइसच्चेव अलिए वा ॥ १९. तत्त्वार्थवातिक प्र० भाग संपादक प्रो० महेन्द्रकुमार
सन्मति प्रकरण ॥२८॥ न्यायाचार्य हिन्दी सार ११६ पृ० १८७ ।
२३. तत्त्वार्थवार्तिक: अकलदेव संपा०पं० महेन्द्रकुमार २०. अपितानर्पित सिद्धे-सर्वार्थसिद्धि-पूज्यपाद ५-३२।
जी भाग १, पृष्ठ ३६, १/६ । २१. भयणाविहुभइयत्वा जइभयणाभयइ सव्वदच्वाइ । एवं भयणा णियमो वि होइ समयाविरोहेण ॥ २४. सिद्धिविनिश्चय टीका भाग १ सम्पादक प्रो० महेन्द्र
सन्मतिप्रकरण ३-२७। कुमार जी प्रस्तावना पृष्ठ ६१ ।
दुखद-वियोग वीर सेवा मन्दिर के परम-हितेषी एवं जन वाङ्मय के अनन्यसेवी, महामनस्वी स्व० ला. पन्नालाल जी अग्रवाल जीवन पर्यन्त धर्म प्रभावना एवं साहित्योद्धार के लिए सतत प्रयत्नशील रहे । वे दोर्ष काल तक वीर सेवा मन्दिर कार्यकारिणी के सदस्य भी रहे।
वीर सेवा मन्दिर परिवार उनके दुखद निधन पर हार्दिक संवेदना प्रकट करता है और स्वर्गीय आत्मा की सद्गति की प्रार्थना करता है।
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होनहार युवक स्व. राष्ट्रदीप (सुपुत्र श्री रत्नत्रयधारी जैन, प्रकाशक 'अनेकान्त') का हृदयगति बंद होने से असमय में निधन हो गया। दिवंगत आत्मा को सद्गति और कुटुम्बियों को धैर्य की क्षमता हो, ऐसी कामना है।
'असारे खलु संसारे मृतः को वा न जायते।' 'राजा राणा छत्रपति हाथिन के असवार । मरना सबको एक दिन, अपनी अपनी बार ।।'
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