Book Title: Anekant 1982 Book 35 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 87
________________ अपभ्रंश काव्यों में सामाजिक-चित्रण अर्थात् अपनी छट्ठी की रात्रि में ही एक विद्याधर बड़ा भारी अपमान है। अत: अब तत्काल यहां से चल द्वारा प्रद्युम्न का अपहरण कर लिया गया। इसीलिए देना चाहिए।' यह विचार कर वह अगले दिन ही सबसे रुक्मिणी अपनी सखियों से कहती है कि मैं अपना स्तनपान आज्ञा लेकर चल देता है। किसे कराऊँ ? बेटी की विदा: ५. समस्या-काइ विटतउ तेण विवाह के बाद बेटी की विदा माता-पिता के जीवन पूर्ति-धरहु तेणजि पवरघणु दाणु न दिण्णउ तेन । की सर्वाधिक मार्मिक एवं करुण घटना है। भारतीय समाज लोह मरि नरयहं गयउ काइं विटत्तउ तेण ॥ मे बेटी का जन्म प्रारम्भ से ही उसके माता-पिता के लिये अर्थात् प्रचुर धनार्जन करके घर तो भर लिया किन्तु एक बडी भारी धरोहर के रूप में माना जाता रहा है। दान नहीं दिया और लोभ के कारण नरक मे जा पड़ा। एक और तो उन्हे सुयोग्य विवाह-सम्बन्ध के हो जाने तथा तब 'ऐसे धनार्जन से लाभ ही क्या? पुत्री के स्वर्णिम भविष्य की कल्पना से आल्हाद उत्पन्न ६ समस्या-पुण्णं लब्भह एहु ।। होता था, तो दूसरी ओर विवाहोपरान्त विदा करते समय पूर्ति-विज्जा-जोदण-व-घणु-परियणु कय णेहु । उसके दिछोह का असहनीय दुख भी होता है। किन्तु यह बल्लहजण मेलायउ पुणे लपइ एहु ।। एक ऐसा सामाजिक नियम है कि जिसकी उपेक्षा नही की अर्थात् ससार में विद्या यौवन, सौ. दर्य, धन, भवन, जा सकती। अपभ्रश-कवियो ने इस प्रसग को बडा ही परिजनो का स्नेह एवं प्रियजनो का सयोग पूण्य से ही करणाजनक बताया है। मेहेसर चरिउ के एक प्रसंग में प्राप्त होता है। अपनी बेटो की विदा के समय राजा अकम्पन का सारा उक्त समस्यापूर्तियो मे पौराणिक, आध्यात्मिक, परिवार एव नगर शोकाकुल हो जाता है। पिता उसे सामाजिक एव लोकिक सभी प्रकार के प्रसग आए है। अवरुद्ध कण्ठ से शिक्षाए देता हुआ वहता है-'हे पुत्रि, श्रीपाल अपने शिक्षा काल मे गुरु चरणो मे बैठ कर सभी अप। शील उज्ज्वल रखना, पति के प्रतिकूल कोई भी विद्याओं में पारंगत हो चुका था अत राजदरबार के इस कार्य मत करना । कडए एवं कठोर वचन मत बोलना, साक्षात्कार मे वह उत्तीर्ण हो गया और उन हठीली एव सास ससुर को ही अपना माता-पिता मान कर विनय गर्वीली राजकुमारियो को जीत लिया। करना, गुरुजनो को प्रत्युत्तर मत देना, सभी से हसी-मजाक जामाताओं का ससुराल में निवान : मन करना। घर में सभी को सुला कर सोना एव सबसे जामाताओ के लिये ससुगल का मुख सर्वाधिक सन्तुष्टि पहले जाग उठना । बिना परीक्षण किए कोई भी कार्य मत का कारण होता है क्योकि वहा माले-सालियो के साथ करना । ऐसा भी कोई कार्य मत करना, जिससे मुझ प्रेमालाप, मधुर मिष्ठान एव सभी प्रकार के सम्मान सहज अपयश का भागी होना पडे ।" ही उपलब्ध रहते हैं। अन अपभ्रश काव्यो मे अनेक फिर वह अपने जामाता से कहता है-"हमारे ऊपर जामाता विवाहोपरान्त कुछ समय के लिये ससुराल मे स्नेहकृपा बनाये रखना तथा समय-समय पर आते-जाते रहते हुए देखे जाते है। श्रीपाल भी अपनी ससुराल में बने रहना । अपनी बेटी सुलोचना तुम्हारे हाथों में सौप दी जब कुछ दिन रह लेता है तब एक दिन अर्धरात्रि के समय हैं अत अब उसका निर्वाह करना। जाउ के आगे भी उसकी नीद खुल जाती है और विचार करने लगता है कि कुछ कहना चाहता था, किन्तु उसका गला रुध गया, वाणी मैं ससुराल मे पड़ा हुआ हूँ। यहा लोग मुझे 'राज जवाई' मूक हो गई और आसुओ के पनारे बहने लगे, फलस्वरूप कहते हैं। न तो मेरा कोई नाम एव शौर्य-पराक्रम ही वह बेचारा आगे कुछ भी न कह सका।' जानता है और न मेरे पराक्रमी तिा तथा उनके साम्राज्य परिवार में पुत्र का महत्व: के विषय में ही किसी को कोई जानकारी है। यह तो मेरा भारतीय सामाजिक-परिवार मे पुत्र का स्थान पूर्ण १. सिरिवाल चरिउ-४१ । २. मेहेस र चरिउ-७1८-६ ।

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