Book Title: Anekant 1982 Book 35 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 60
________________ २२,३०२ किसको रोक सकता है? दूसरी तरफ बहने की ? दरकार ही क्या है जब सारी सम्पत्ति में ही मेरा अधिकार हो जायगा । इस समय की स्थिति को देखते हुए यदि हमारी गहने पहनने की इच्छा होती है, तो देश, समाज और ईश्वर के प्रति अन्याय और महापाप है। स्त्रियों का गहना सो लज्जा है और वह लज्जा घूंघट और पर्दे से नहीं होती । वैसे तो हम घूंघट निकालती हैं, वह भी केवल परिचितों से और दूसरी तरफ बड़ों का कहना तक नहीं मानती। हमें यदि लज्जा करनी चाहिए तो झूठ से व्यर्थ के आडम्बरो से बुरे कामों से, फैशन तथा भोग-विलासों से । हमारा शरीर सांसारिक सुखों के लिये नहीं, भगवन् प्राप्ति के लिये हुआ है। यदि हममें विशेष ज्ञान है और हम उसका सदुपयोग नहीं करते तो हम मनुष्य होते हुए भी बिना सींग के के समान हैं। पशु विवाहिक संस्कार के अनन्तर गृहस्व धर्म की एक बड़ी भारी जिम्मेदारी हम अपने ऊपर ले लेते हैं । उस समय यदि गृहस्थ रूपी वायुयान मे पति-पत्नी रूपी पंखों से, पूर्वजन्म के कर्मरूपी पेट्रोल से और बुद्धि रूपी Pilot द्वारा दुनियाँ के प्रलोभनों आदि आंधी-तूफानों से बचते हुए संसार यात्रा करें तो अपने लक्ष्य को पहुंच कर सुखी हो सकते हैं पर जिसने अपनी इन्द्रियों को और पूज्य महात्मा जी के मतानुसार कम-से-कम स्वादेन्द्रिय को ब में नहीं किया, चाहे वह कैसा भी पंडित M. A. LL.B. आदि डिग्री धारी, प्रोफेसर, जज, सुधारक और देश सेवक भी क्यों न हों उसमें और एक वे समझ बालक में कुछ भी अन्तर नहीं है । इस समय हम सब भयानक विपत्ति में फंसे हुए हैं। दिन-प्रतिदिन आयु बढ़ती नहीं घटती जा रही है। ऐसी अवस्था में हमें अपना एक ध्येय निश्चित कर लेना चाहिए। मनुष्य योनि का फल ही ईश्वर प्राप्ति है' उस ईश्वर प्राप्ति के अलग-अलग मार्ग हो सकते हैं। कौन-सा रास्ता ग्रहण करना यह अपना-अपना अधिकार है। किसी के लिये देश सेवा जेल जाना, लाठी खाना, बहर प्रचार करना आदि ठीक हो सकता है, किसी के लिये गृहस्थ में नियमित रह कर दान धर्म आदि करते हुए गृहस्थधर्म का पालन करना ठीक हो सकता है किसी के लिये एकान्त में --- चान्स भगवान का भजन करना ठीक हो सकता है और कोईकोई भ्रम से अधिकारियों की खुशामद करके देशद्रोही बनना भी ठीक समझते हैं यह सब अपनी-अपनी रुचि भावना और विश्वास पर निर्भर करता है । शायद आप उकता गए होंगे अब मैं आपका १-२ मिनट समय और लूंगी। आजकल प्राय: All marriage relations brought about by attachment to the colour of the face to the outlines of the countenance to figure, form or personal beauty, and in losses and are very unhappy? सभी ऊपर के दिखावे को लेकर चेहरे की सुन्दरता पर मुग्ध रहते हैं भीतर के गुणों की ओर कोई नहीं देखता इसका परिणाम आगे जाकर दुःख होता है जैसा कि आज कल Europe और America में सैकड़ों और हजारों की तादाद में Case court में जाते हैं । The aim of the husband and wife should be elevation of marriage tie and not money making and wrong use of family relation. स्त्री-पुरुष दोनों को एक-दूसरे पर भार स्वरूप न होकर सुख-दुख के भागी होना चाहिए । सज्जनों विवाह की रश्में करनी बाकी हैं इसलिये बाल विवाह वेमेल घिवाह, स्त्री शिक्षा आदि विषयों पर मैं कुछ भी नहीं कहूंगी। अन्त में आपके कष्ट के लिये आभार मानती हुई प्रार्थना करती है कि आप सब हमें सत्य पथ पर चलने का आशीर्वाद दें और खादी पहनने का प्रण करें। बादी का महत्त्व तो पूज्य बापूजी के कारण एक छोटे से बच्चे से लेकर बुड्ढे तक को मालूम है । हमारे धर्मों में और खास कर जैनधर्म में तो अधिक ही परम धर्म माना गया है। मिल और विलायती वस्त्रों में कितनी हिन्सा होती है यह तो किसी से छिना नहीं होगा फिर इसे यहां दुहराने से क्या फायदा? हां एक बात मैं सुधारकों के प्रति कहना भूल गई। स्वामी राम ने कहा है Young would-be Reformer ! decry not the ancient customs and spirituality of India. By introducing a fresh element of discord, the Indian people can not reach unity.

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