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पचास वर्ष पूर्व से बोलिक भाषण श्रीमती रमा जैन का अपने विवाहोत्सव पर दिया हुमा भाषण : श्री परमात्मा देव व पूज्य महानुभावों को प्रणाम उसके अभिभावक उसे कुमारी रखने में पाप मान कर, करते हुए सबसे पहले मैं आप सबका हृदय से अभिनन्दन बिना पात्र का विचार किये चाहे जहां उस बेचारी को करती है जिन्होंने हमारे लिये इतनी कड़ी गर्मी की मौसम ढकेल देते है, या कही से कर्ज मिल सका तो कर्ज लेकर, में यहां आने का कष्ट उठाया है फिर इसके बाद जिम घर-वार बेच कर जन्म भर के लिये दुखी हो जाते हैं और कार्य के लिये यह समारोह रचा गया है उसके विषय में मै प्रत्यक्ष मे यह सिद्ध कर देते है कि भारतवर्ष मे गरीब घर कुछ कहना चाहती हूं।
मे कन्या का जन्म होना ही एक प्रकार का देवी कोप है। आप जानते है कि आजकल सारे संसार मे दुख
कही-कही तो बेचारी लड़कियों को आत्महत्या तक करनी
पड़ती है। पञ्जाब के आधुनिक सन्यासी स्वामी राम के छा रहा है। कही राष्ट्र आपस में लड़ रहे हैं, कही बेकारी से, कही काम की अधिकता से, कही अकाल मे, कही वाक्य मुझे इस समय याद आ रहे है। (overproduction) अर्थात् पैदावारी की बहुतायत से,
An average Indian home is typical of the
state of the whole nation-Very slender means कही स्वतन्त्रता के अभाव मे, कही स्वर्ण के अभाव मे. कही स्वर्ण की बहुतायत से दुख हो रहा है फिर भारतवर्ष
and not only yearly multiplying mouths to
feed but slavishly to incur, undue expences in का तो कहना ही क्या जो सैकडो वर्षों से गुलामी की जजीर मे जकडा हुआ है, जहाँ धर्म के नाम से अधर्म
meaningless and cruel ceremonies of marriage
etc. करते हुए हिन्दू-मुसलमान ही नहीं, हिन्दुओ मे, मनातनी
____ भारतवर्ष का साधारण गृहस्थ सारे राष्ट्र की दशा आर्यसमाजी, जैनियो में श्वेताम्बरी, दिगम्बरी, मुसलमानो
का चित्र है। बहुत थोडी-ती तो आमदनी और तिस पर में सिया, सुन्नी, छोटी-मोटी बातों पर जिनमें कुछ भी
प्रति वर्ष खाने वालों (सन्मानों) की संख्या में वृद्धि ही नहीं तथ्य नही है लडते है जहां के ही नही करोड़ों मनुप्प अन्न
वरन् विवाहादि की दुखदायी रस्मो में द्रव्याभाव से के महगे होने से, मस्ते नही होने के कारण एक ममय भी .
अनुचित खर्च । पेट भर न खकर किसी तरह उदराग्नि को शान्त करते
____ मुझे दुःख के साथ कहना पड़ता है कि मेरे विवाह में हैं और उस हमारे दुख को देख कर ममार के सर्वश्रेष्ठ
जितनी सादगी मैं चाहती थी वह कुछ भी नहीं हुई। मुझे पुरुष महात्मा गाधी अपने माथियों सहित असंख्य आदमियों
विश्वास है कि यदि पूज्य बापू जी और पूज्य श्री जमनालाल को लेकर जेलो में तपस्या कर रहे है। जिनके लिये वे
जी बजाज जेल से बाहर होते तो ऐसा कभी नहीं हो जेलों में सड़ रहे हैं वही हम अपना समय खेल, तमाशा,
पाता। आमोद-प्रमोद और गुलछरों में व्यतीत कर रहे है। क्या
भारतवर्ष जब धन-धान्य से परिपूर्ण था, दूध और घी शर्म की बात नही है ?
मनों के भाव ही नही, दूध को लोग बेचना पाप समझते थे, क्षमा करेंगे, विवाह संस्कार हिन्दू धर्म के सोलह उस समय विवाहादि की प्रत्येक रश्मे कुछ-न-कुछ तथ्य को संस्कारों में एक मुख्य था जिमको परिवर्तन करते-करते लेकर चलाई गई थी पर अब दूध तो दूर रहा पानी, तक. हमने यहाँ तक बदल दिया कि जिनका विवाह किया जाता के दाम देने पड़ते हैं। हर एक बातें समयानुसार बदलती है उन्हें इसके रहस्य तक का पता नही रहा और मुड्डे- रहती है अब हम इन रश्मों के भावार्थ को भूनकर लकीर गुड़ियो का खेल बना दिया। कई समाजों में तो इसका के फकीर रह गए। कुप्रथाओं को बन्द करने की दृष्टि से यहाँ तक पतेन हो गया है कि गरीब घर की लड़की को क्या मैं यह प्रार्थना दोनों तरफ से कर सकती हूं.कि कम चाहे वह कितनी ही सुशीला, योग्य और बुद्धिमती हो मे कम इम विवाह में न तो गहना और न बढेज दें। विवाह धनाभाव के कारण आजन्म कुमारी रहना पड़ता है ओर के बाद तो कौन अपनी कन्या को नही देता और कोन