Book Title: Anekant 1982 Book 35 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 55
________________ जंन वर्शन में अनेकान्तवाद माना जाय तो पदार्थ का ही अभाव हो जायेगा वह शब्द अनेक पर्यायो को धारण करता है। प्रदेशिनी अंगुली में का विषय नही हो सकेगा अत: नास्तित्व और अप्रत्यक्षत्व से मध्यमा की अपेक्षा जो भिन्नता है वह अनामिका की अपेक्षा शय जो होगा वह अवस्तु ही होगा ।" जिस पदार्थ मे नही है प्रत्येक पररूप का भेद जुदा-जुदा है। मध्यमा ने जिाने शब्दों का प्रयोग होता है उसमें उतनी ही वाच्य प्रदेशिनी में ह्रस्वत्व उत्पन्न नहीं किया अन्यथा शशविषाण शक्तियों होती है तथा वह जितने प्रकार के ज्ञानो का में भी उत्पन्न हो जाना चाहिए था और न स्वतः ही था विषय होता है उसमे उतनी ही ज्ञेय शक्तियाँ होती है। अन्यथा मध्यमा के अभाव में भी उसकी प्रतीति हो जानी शब्द प्रयोग का अर्थ है प्रतिपादन किया। उसके साधन चाहिए थी तात्पर्य यह कि अनन्त परिणामी द्रव्य ही उनदोनों ही हैं शब्द और अर्थ । एक ही घट मे पार्थिव, मातिक- उन सहकारी कारणों की अपेक्षा उन-उन रूप से व्यवहार मिट्टी से बना हुआ, सत्, ज्ञेय, नया, बड़ा आदि अनेक मे आता है। शब्दों का प्रयोग होता है तथा इन अनेक ज्ञानों का विषय अनन्तकाल और एक काल में अनन्त प्रकार के उत्पार होता है जैसे धडा अनेकान्त रूप है उसी तरह आत्मा भी व्यय और ध्रौव्य से युक्त होने के कारण आत्मा अनेकान्तअनेक धर्मात्मा है। अज्ञानी पुरुष प्रत्यक्ष मे, ज्ञान मे आगत, रूप है जैसे धडा एककाल में द्रव्यदष्टि से पार्थिव रूप में स्फट स्थिर जो ज्ञेवाकार, उसकी अस्तिता से उठाया हुआ उत्पन्न होता है जलरूप में नहीं, देशष्टि से यहाँ उत्पन्न स्वद्रव्य को न देखता हुआ सब ओर से शून्यता को प्राप्त होता है पटना आदि में नहीं भावदृष्टि से बड़ा उत्पन्न होता हा अज्ञानी पुरुष स्वयं नाश को प्राप्त होता है। है छोटा नही । यह उत्पाद अन्य जातीय घट किञ्चिद् अनेकान्तवादी शीघ्र उत्पत्ति है जिसकी ऐमे सुस्पष्ट, विजातीय घट । पूर्ण विजातीय पटादि तथा द्रव्यान्तर सुविशुद्ध ज्ञान के तेज से अपने आत्मद्रव्य के अस्तित्व के आत्मा आदि के अनन्त उत्पादों से भिन्न है अतः उतने ही द्वारा वस्तु का स्पष्ट निरूपण करके स्वयं अपने मे परिपूर्ण प्रकार का है। इसी प्रकार उस समय उत्पन्न नहीं होने होता हुआ जीवित रहता है।" वाले द्रव्यों की ऊपर नीची, तिरछी, लम्बी, चौड़ी आदि ____ अनेक शक्तियों का आधार होने से भी अनेकान्त है अवस्थाओं से भिन्न वह उत्पाद अनेक प्रकार का है। जैसे घी चिकना है। तृप्ति करता है। उपबृहण करता है अनेक अवयव वाले मिट्टी के स्कन्ध से उत्पन्न होने के अत अनेक है अथवा जैसे घडा जल धारा आहरण आदि कारण भी उत्पाद अनेक प्रकार का है उसी तरह जलअनेक शक्तियो से युक्त है उसी तरह आत्मा भी द्रव्य, क्षेत्र, धारण आचमण हर्ष, भय, शोक, परिताप आदि अनेक काल और भाव के निमित्त से अनेक प्रकार की वैभाविक अर्थ क्रियाओ मे निमित्त होने से उत्पाद अनेक तरह का है पर्यो की शक्तियो को धारण करता है। जिस प्रकार एक उसी समय उतने ही प्रत्यक्षभूत व्यय होते हैं जब तक पूर्व ही घडा अनेक सम्बन्धियो की अपेक्षा पूर्व-पश्चिम, दूर-पास, पर्याय का विनाश नहीं होता तब तक नूतन उत्पाद की नया-पुराना, समर्थ-असमर्थ देवदत्तकृत चैत्रस्वामिक, संख्या संभावना नही है उत्पाद और विनाश की प्रतिपक्षपरिमाण पृथकत्व, संयोग विभागादि के भेद से अनेक भूत स्थिति भी उतने ही प्रकार की है जो स्पिंत व्यवहारों का विषय होता है उसी तरह अनन्त सम्बन्धियों नहीं है उसके उत्पाद और व्यय नहीं हो सकते । की अपेक्षा आत्मा भी उन-उन अनेक पर्यायों को धारण घट उत्पन्न होता है इस प्रयोग को वर्तमान तो इसलिए करता है अथवा जैसे अनन्त पुद्गल सम्बन्धियों की अपेक्षा नही मान सकते कि घड़ा अभी तक उत्पन्न नहीं हुआ है, आस्मा भी उन-उन अनेक पर्यायों को धारण करता है उत्पत्ति के बाद यदि तुरन्त विनाश मान लिया जाय तो अथवा जैसे अनन्त पुपल सम्बन्धियों की अपेक्षा एक ही सद्भाव की अवस्था का प्रतिपादक विनाश मान लिया जाय प्रदेशिनी अंगुली अनेक भेदों को प्राप्त होती है उसी तरह तो सद्भाभाव की अवस्था का प्रतिपादक कोई शब्द ही जीव भी कर्म और नोकर्म विषय उपकरणों के सम्बन्ध से प्रयुक्त नहीं होगा अतः उत्पाद में भी अभाव और विनाश जीवस्थान, गुणस्थान, मार्गणस्थान, दंडी, कुंडली आदि में भी अभाव इस प्रकार पदार्थ का अभावही होने से

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