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मैं कौन हूँ
श्री बाबूलाल जैन, कलकत्ता वाले किसी ने प्रश्न किया कि आत्मा को कैसे पावे। मेरे एक जानने वाला है और एक इच्छा का होना है। आप को एक कहानी बच्चों की याद आ गयी कि एव महात्मा कहते है मेरा मूड ठीक नही है यह किसने जाना। वहां के पास एक आदमी गया और कहने लगा मुझे आनद पर एक जानने वाला है और एक मूड है। आप कहते है चाहिए। महात्मा ने कहा कि मैने अभी आनंद मगरमच्छ मुझे आज बहुत चिन्ता है आकुलता हो रही है यह किसने को दिया है उससे ले लो। वह नदी के पास गया और जाना कि चिन्ता हो रही है एक जानने वाला है और एक मगरमच्छ को बोला कि महात्मा ने तुम्हे आनद दिया है चिन्ता का होना है। ये मैने अभी सत्य बोला या झूठ उसमें से मुझे भी दे दो मगरमच्छ ने कहा कि पहले मुझे बोला यह किगने जाना एक जानने वाला है और एक एक लोटा पानी पिला दो बहुत प्यामा हू फिर मै तुझं झूठ बोलना या सत्य बोलना है। मैं ४ माइल चला यह आनंद दे दगा उस आदमी ने कहा कि क्या बात कहने डो किमने जाना वहा एक जानने वाला है और एक चलने पानी में रहते हो फिर भी पानी मागते हो। उसने वहा पाला है। मेरे पास इतना धन है यह किसने जाना वहा कि तुम भी तो आनद मे रहते हो और आनद माग रहे एन. जानने वाला है एक धन है और एक धन का हो। यह कहानी तो इतनी ही है परन्तु यही हमारी
स्वामीपना है। हमने कोई चीज खाई वह हमे अच्छी लगी कहानी नही है क्या? आत्मा ही पूछ रही है कि आत्मा
और मीठी भी वहा तीन चीज हुई एक वह वस्तु जो मीठी को कैसे पाया जाये।
पी एक अच्छे जानने रूप भाव और एक इन दोनों का किसी व्यक्ति से पूछिये या अपने मे ही पूछिये कि
जानने वाला । बाहर मे हमने कोई कपडा पहना गाडी पर शरीर में रोग है इसको किसने जाना तो वह कहेगा मैने चढे और हमे बहुत आनद आया वहा पर भी तीन है एक जाना इससे मालूम हुआ कि वहा दो है एक जानने वाला गाडी और उस पर चढ़ना एक आनन्द का आना और एक और एक शरीर जिसमे रोग हुआ है। मे भूखा हू मुझे भूख उनको जानने वाला। क्या इससे यह साबित नही हो रहा लगी है या प्यास लगी है इसको किसने जाना तो यही
है कि हर हालत मे कोई एक जानने वाला है जो हमारे जवाब है मैंने जाना। फिर यहा पर दो हो गये एक जानने भीतर होने वाले मूक्ष्म से सूक्ष्म विकल्पो को, विचारो के, वाला और एक जिसको भूख या प्यास लगी है। शरीर भावों को चाहे वह अच्छे हो अथवा बुरे, शुभ हो चाहे पर चोट लगी है शरीर दुख रहा है यह किसने जाना मैने अशुभ उनको जान रहा है। इन मन सम्बन्धी भावों मे, जाना यहां पर भी एक जानने वाला है और एक शरीर है परिणामो में विचारो मे परिवर्तन होता जा रहा है पर जिसको चोट लगी है । इसी प्रकार भीतर मे क्रोध हुआ है जानने वाला मदा काल एक रूप रहता हुआ मात्र जान ही आप दूसरे से कहते है कि मुझे क्रोध हो रहा है यह रहा है। यहा तक क्रोध को भी जाना है। बाहर मे भले किसने जाना कि अभी क्रोध है अभी क्रोध ज्यादा है अथवा ही हमने किसी को अच्छा कहा हो प्रेम दिखाया हो और कम है आप कहेगे मैंने जाना वहा फिर दो हो गये एक भीतर मे उसके प्रति अन्यथा भाव है तो जानने वाले ने क्रोध है जो कभी कम हो रहा है कभी ज्यादा और एक वह दोनो बातो को ही जाना है। यही हालत शरीर की है है जो न कम होता है न ज्यादा परन्तु जान रहा है। चाहे शरीर की कैसी भी अवस्था क्यों न हो चाहे स्वस्थ हो भीतर में विकल्प चल रहे है इच्छा हुई है आप कहते है चाहे अस्वस्थ, चाहे दुबला हो चाहे ताकतवर परन्तु जानने मेरे को यह इच्छा हुई है। इस बात को किसने जाना। वाले ने उसकी हर हालत को जाना है।