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सम्यक्त्व-कौमुदी सम्बन्धी अन्य रचनायें एवं विशेष ज्ञातव्य
0 श्री अगर चन्द नाहटा, बीकानेर
'अनेकान्त' क सितम्बर ८१ के अक में डा० ज्योति- चका है। दूसरी रचना महीचन्द रचित सम्यक्त्व कौमुदी प्रसाद जैन का एक लेख 'मम्यक्त्व ---कौमुदी सम्बन्धी है, जिसमें १३ अध्याय और १९८१ ओबी है। इसकी रबनाये' शीर्षक छपा था। उसकी पूर्ति के रूप मे दिसम्बर कथाए दया सागर की सम्यक्त्व कौमुदी के समान ही है । ८१ के अक में 'गम्यक्त्व कौमुदी सम्बन्धी अन्य रचनाये' महीचन्द के शिष्य देवेन्द्रकीति ने कालिका पुरान नामक नामक लेखप्रकाशित हो चुका है। पर जभी-अभी पार्श्वनाथ एक बडा ग्रथ रचा है उसमे सम्यक्त्व कौमुदी की कथाए विद्याधन शोध सस्थान, वाराणमी-५ से 'जैन साहित्य का भी शामिल कर ली गयी है। आधुनिक मराठी जैन बृहद इतिहास का यों भाव प्रकाशित हुवा है, उसने माहित्यकारो मे कत्लाप्पा भरमाप्पानिटवे ने सम्यक्त्व कन्नड ओर मराठी भाषा की सम्यक्त्व कौमुदी सम्बन्धी कौमुदी का मराठी अनुवाद किया है। पर उसमे मूल अथ कुछ नई जानकारी प्रकाश में आई है। इसलिए पाठको को अज्ञातकर्तृक लिखा है। को उसकी जानकारी देने के लिए यह लेख, पूर्व प्रकागिन
हमारे मग्रह में सस्कृत गद्य में सम्यक्त्व कौमुदी, दोनो लेखो की पूर्ति के सपने प्रकाशित किया जा रहा है।
मूलचन्द किशनदाम कापडिया, सूरत से प्रकाशित सन् जैन साहित्य का बृहद इनिहाम' के मानवे भाग में
१६३६ की प्रथम आवृति है। माणिकचन्द दिगवर जैन कन्नड, तमिल और मराठी तीन भापाओ के जैन गाहित्य
परीक्षालय मे यह पाठ्यक्रम में रखा गया था, यह भी का विवरण स्व० प० के० भुजबली शास्त्री और मराठी
अज्ञात कर्तृक है। इससे २५ वर्ष पहले प० उदयलाल माहित्य का विवरण डा० विद्याधर जोहरापरवर लिखित
कागनीवाल ने इसे प्रकाशित किया था, लिखा है । जिसका है। कन्नद जी गाहित्य में मम्बकत्व कौमुदी नामक रचना
उल्लेख डा. ज्योतिप्रमादजी के लेख मे हो चुका है। सम्यक्त्व प्राप्त है। जिनमे मे कवि मगरय का कुछ विशेष विवरण
कौमुदी नामक श्वेताम्बर जिनहर्षगणि स० १४८७ की उपरोक्त ग्रन्या पृष्ठ ८७ मे छपा है उसके अनुसार भगरग
गचित, मूलरूप में प्रकाशित हुई है वह तो मुझे नही मिली तृतीय का गमव गोनयी शताब्दी के पूर्वार्द्ध का बनाया है।
पर उसका गुजराती अनुवाद आत्मानद जैन सभा भावऔर यह अथ प्रकाशित भी हो चुका है। इसका सम्पादन
नगर से सन् १९१७ मे प्रकाशित हुआ, यह मेरे संग्रह में प० शान्तिलाल गात्री ने किया है और अतिबल ग्रथमाला,
है। इन श्लोकबद्ध सस्कृत ग्रथ के रचयिता जिन हर्षगणि, बेलगाव मे यह प्रकाशित हुआ है ।
तपागच्छीय जयचन्दमूरि के शिष्य थे। इसमे सात प्रस्ताव मराठी जैन साहित्य में दया सागर (दया भूपण) की है। मूलग्रय भी इसी सभा से पूर्व छप गया था। दि० श्वे० सम्यक्त्व-कौमुदी मे ११ अध्याय और २३८० ओवी है। सम्यक्त्व कौमुदी की कथाओ के तुलनात्मक अध्ययन के यह जिनदास चवड़े, वर्धा स० १६०८ में प्रकाशित हो . लिए यह अथ महत्वपूर्ण है।