________________
अपभ्रश काव्यों में सामाजिक-चित्रण
डा. राजाराम जैन, रीडर एवं अध्यक्ष-संस्कृत प्राकृत विभाग, पारा मध्यकालीन भारतीय इतिहास एव सस्क्रति के सदी तक के भारतीय इतिहास एव सस्कृति के प्रामाणिक सर्वांगीण प्रामाणिक अध्ययन के लिए अपभ्र श-साहित्य चित्र सुसज्जित है। प्रस्तुत लघु-निबन्ध मे उन सभी पर अपना विशेष महत्व रखता है। उसमें उपलब्ध विस्तृत प्रकाश डालना तो सम्भव नही, हाँ, उदाहरणार्थ केवल प्रशस्तियां, ऐतिहासिक-सन्दर्भ लोक-जीवन के विविध चित्र, कुछ सरस एव रोचक तथ्यों पर प्रकाश डालने का प्रयास सम-सामयिक सामाजिक परिस्थितियां, राजनीति, अर्थनीति, किया जा रहा है। एवं धर्मनीति के विविध सूत्र, हास-परिहास, एव विलास- सामाजिक परिस्थितियां : वैभव के रससिद्ध चित्रांकन इस साहित्य के प्राण है। अपभ्रश काव्यो मे परम्परानुमोदित पौराणिक, अपभ्रंश के प्रायः समस्त कवि आचार और दार्शनिक तथ्यो सामाजिक मान्यताओ को ग्रहण किये जाने पर भी समतथा लोक जीवन की अभिव्यजना कथाओं एव चरितो के सामयिक स्थितियो के उनमें पर्याप्त निर्देश मिलते है। इन परिवेशों द्वारा करते रहे है। इस प्रकार के चरितो और काव्यो में कुछ ऐसी मान्यताए निर्दिष्ट की गई है, जो कथानकों के माध्यम से अपभ्रंश-साहित्य मे मानव-जीवन मध्यकालीन स्थितियो पर प्रकाश डालती है। वैदिक यथा जगत की विविध मूक-भावनाए एव अनुभूतियाँ वर्णाश्रम धर्म के सिद्धान्तानुसार ब्राह्मण का कार्य पठनमुखरित हुई है। क्योंकि वह एक और पुराण-पुरुषो के पाठन और यज्ञ-यागादि करना था। पर १५वी सदी मे महामहिम आदर्श चरितों से समृद्ध है तो दूसरी ओर विदेशी आक्रमण होने एव मुसलमानो के उत्तराधिकार सामन्तों वणिकपुत्रो अथवा सामान्य वर्ग के व्यक्तियो के सम्बन्धी पारम्परिक कलह तथा राजनैतिक अस्थिरता के सुखों-दुखों अथवा रोमांसपूर्ण कथाओ से परिव्याप्त । वन- कारण देश की आर्थिक स्थिति बिगडने लगी थी। विहार, उद्यान-क्रीड़ाएं, संगीत-गोष्ठिया, आखेट-बूत, एव फलस्वरूप ब्राह्मण आजीविका के हेतु खेती भी करने लग जल-क्रीड़ाएं, रासलीलाए, सरोवर-स्नान के समय प्रेमी- गए थे। महाकवि र इधू ने अपनी एक रचना 'धण्णकुमारप्रेमिकाओं के परस्पर में छकाने के लिये वस्त्रो के अपहरण चरिउ' में 'बम्भणकिसाणु" लिख कर उसका स्पष्ट निर्देश आदि विविध चित्र-विचित्र चित्रणों से अपभ्रंश-साहित्य की किया है और इस प्रकार उसकी परिवर्तित स्थिति पर विशाल चित्रशाला अलंकृत है। चउमुह, ईशान एवं द्रोण अच्छा प्रकाश डाला है।' जैसे महाकवियों ने इस महान चित्रशाला की नीव रखी, जातयां : तो जोइन्दु स्वयम्भ, पुष्पदन्त, हरिभद्र, धनपाल, वीर, 'धण्णकमार चरिउ' के उपर्यन्त 'a कनकामर, पद्मकीति, हेमचन्द्र, अब्दुल-रहमान प्रभृति काव्य- मे 'किसाण' का विशेषण 'बम्भए' है और यह इस बात कुशल सरस्वती पुत्रों ने अपभ्रंश के उस भवन को धड़कर का द्योतक है कि ब्राह्मणजाति के किसान भी होते थे। भव्य-प्रसाद के रूप में अलकृत किया है और यश.कीर्ति एवं यदि यह तथ्य न होता तो कवि 'किसाणु' शब्द से ही रघु जैसे प्रतिभाशाली महाकवियों ने उसे सर्वतोभावेन अपना काम चला लेता। 'बम्भणु किसाणु' का उसने समृद्ध बनाये रखने का अथक प्रयास किया है। इस प्रकार किसी विशेष अभिप्राय से ही प्रयोग किया है। बिहार मे अपनश-काव्यों में विक्रम की छठवी सदी से सोलहवी जहाँ ब्राह्मणो के लिये खेती करना वर्जित है और अधिकाश १.घण्य ३२३।३।
२. हरिवंस० २।२० ३।१३-१४, ४१६ ।