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आचार्य नेमिचन्द्र सिमान्त चक्रवती
रचयिता को गोम्मटसार के रचयिता से भिन्न मानते है। सस्कृत में शब्दार्थ मात्र दिया गया है। इसमे अन्य ग्रंथों के अपनी पुरातन जैन वाक्यसूची की प्रस्तावना पृ० ६२-६४) उद्धरण भी स्वरूप है। गकी हिन्दी टीकाएँ अनेक हैं। मे उन्होंने दोनों की भिन्नता के निम्नलिखित कारण वाव सुरजभान जी वकील की हिन्दी-टीका अपेक्षाकृत अन्य दिए है
हिन्दी टीकाओ से अच्छी है। १. द्रव्यसंग्रह के कर्ता का सिद्धान्त चक्रवर्ती पद विषयवस्त.. सिद्धान्ती या सिद्धान्तिदेव पद से बडा है।
इसके तीन अधिकार है-प्रथम अधिकार मे २७ २. गोम्मटसार के कर्ता नेमिचन्द्र ने अपने ग्रन्थों में गाथाओ में छह द्रव्य और पाँच अम्तिकाय का वर्णन है, अपने गुरु या गुरुओ का नामोल्लेख अवश्य किया है। द्वितीय अधिकार में, ग्यारह गाथाओ मे सात तत्त्व ओर परन्तु द्रव्य संग्रह मे बैमा नही है।
नौ पदार्थो का वर्णन है तथा उतनीय अधिकार में बीम ३. टीकाकार ब्रह्मदेव ने अपनी टीका की प्रनाथना गाथाओ में मोक्षमार्ग का निरूपण हे। उन्ही तीनो अधिकारी मे जिन नेमिचन्द्र मिद्धान्तिदेव को द्रव्यसग्रह का कर्ता के अन्तर्गत इममे चौदह गणस्थान, चौदह मार्गणा, द्वादश:बताया है उनका समय धाराधीश भोजकातीन होने मे अनुप्रेक्षा, तीन लोक, व्यवहार और निश्चय मोक्षमार्ग, ई० को ११वी शती है, जबकि चामुण्डराय के गुरु नेमिचन्द्र मम्यग्दर्शन, तीन मूतता, आठ अग, छह अनायतन, द्वादशाङ्ग, का समय ई० को १०वी शती है।
व्यवहार तथा निश्चय चारित्र, ध्यान नथा उमके चार भेद ४. व्यस ग्रह से बर्मा ने भावास्रव के भेदो में प्रमाद तथा पन परमेष्ठी का वर्णन है। को भी गिनाया है और अविनि के पाँच तथा कपाय के इस प्रकार आचार्य नेमिनन्द्र मिद्धान्त चक्रवर्ती, चार भेद ग्रहण किए है। परन्तु गोम्मटसार के कर्ता ने पट्खण्डागम-कपायपाइद-धवला-जय धवला प्रभृति सिद्धान्त प्रमाद को भावानव के भेदो मे नहीं गिनाया और विग्न ग्रन्थो और उनकी टीनागों के पारगामी प्रकाण्ड मनीषी, (दूसरे ही प्रकार से) के बारह और कपाय व २५ भेद गोम्मटमा रादि सिद्धान अषों के प्रणेता, वीरमार्तण्डस्वीकार किए है।
रणरगमल्ल-महामात्य गेनानि-अध्यात्म जिज्ञासू विद्वत्प्रवर इस मबंध में एक बात और कही जा सकती है कि शास्त्र प्रणेता टीकाकार गोम्मटेश प्रतिमा के स्थापयिता मिद्धान्त-चक्रवर्ती द्वारा रचित चार ग्रन्थ 'मागन्त' है, चामुण्ड गय वर्माद (जिन मन्दिर) के निर्माता चामुण्डगय जैसे गोम्मटमार, त्रिलोकमार आदि। यदि द्रव्यमग्रह भी के गुरु एव अत्यत प्रतिभाशाली पुण्य पृ.प थे । उनके द्वारा रचित है तो इस बात की महज कल्पना की
निबंधक जा सकती है कि द्रव्यमग्रह के स्थान पर इसका नाम भी
विक्रम विश्वविद्यालय, 'द्रव्यसार' होना चाहिए था।
उज्जैन (म०प्र०) प० कैलाशचन्द्र शास्त्री ने भी प० जुगलकिशोर जी
सदर्भ-सूची मस्तार के मन से सहमत होते हुए लिखा है कि मुन्नारमिद्धानाचार्य प० लाशचन्द्र णाग्त्री, जैन साहित्य साहब के द्वारा उपस्थित किए गए चारी ही कारण मबल
का इतिहाग' (जै० मा० १०) प्रथम भाग, पृ० ३८२, हैं। अतः जब तक कोई प्रबल प्रमाण प्रकाश में नही आता
गणेण प्रमाद वर्णी जैन ग्रथमाला वीर नि०म०, २५०२ तब तक द्रव्यसग्रह को मिद्धात चक्रवर्ती की कृति नही
२. मि०प० कनाशचन्द्र शास्त्री, जै० मा० इ०, वर्णी माना जा सकता।
जैन ग्रथमाला, पृ० ३६२। टोक:
३. 'मन्मतिवाणी' पत्रिका, इन्दौर में (वर्ष १०, ४-५, द्रव्यसग्रह पर ब्रह्मदेव रचित संस्कृत वृति के
कक्टूबर-नवम्बर १६८०) डॉ. देवेन्द्र कुमार जैन का अतिरिक्त, प्रसिद्ध दार्शनिक प्रभाचन्द्र ने भी एक मक्षिप्त लेख 'गोम्मटेश्वर बाहुबली' पृ० २३ । वृत्ति लिखी है, जिसमे प्रत्येक गाथा के खडान्वय के गाथ
(शेष पृष्ठ टा० पृ० पर)