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आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती
प्रतिमा का निर्माण कराया, वह उनके जीवन की सबसे 'कल्यब्दे पाठ ठीक मानकर उक्त तिथि के वर्ण को ६०७बड़ी उपलब्धि थी।
८ ई० निर्धारित करते है। सिद्धान्त शास्त्री पं० कैलाशचन्द्र सम्राट भरत ने अपने अनुज, बाहुबली की कठोर जी अपनी साहित्यिक छान-बीन के आधार पर, मूर्तितपस्या की स्मृति मे उत्तर भारत मे एक मनोज्ञ प्रतिमा स्थापना का समय ६८१ ई० (विक्रम सं० १०३८) उपयुक्त की स्थापना की थी। कुक्कुट सर्पो से व्याप्त हो जाने के मानते हैं। कारण वह 'कुक्कुट जिन' के नाम से प्रसिद्ध हुई। उत्तर इस प्रकार विभिन्न विद्वानो के मतानुसार बाहुबली भारत की मूर्ति से भिन्नता बतलाने के लिए चामुण्डराय की प्रतिमा का स्थापना काल ई० ६०७ से लेकर द्वारा स्थापित मूर्ति 'दक्षिण कुक्कुट जिन' कहलाई। कर्म- ई० १०२८ तक, लगभग १२१ वर्ष के मध्य झूल रहा है। काण्ड गाथा ६६६ में इस प्रतिमा की ऊँचाई को लक्ष्य में भुझे तो ज्योतिष शास्त्र के अनुसार परीक्षण किए गए रख कर ही नेमिचन्द्राचार्य ने कहा है कि "उस प्रतिमा डॉ० घोणाल और डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री के १८०-९८१ ई० का मुख सर्वार्थसिद्धि के देवों ने देखा है।"
वाले मत उपयुक्त जान पडते है। इस मत मे प० कैलाशचन्द्र "जेण विणिम्मिय पडिमावयणं सव्वमिद्धिदेवेहिं ।।
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जी की भी सहमति है। सव्वपरमोहिजोगिहिं दिट्ठ सो गोम्मटो जयउ ॥" प्राचार्य नेमिचन्द्र की रचनाएँ
-कर्मकाण्ड -गाथा न. ६६६) आचार्य नेमिचन्द्र की प्राकृत गाथाओ मे रचित पाँच प्रतिमा स्थापना का समय-.
रचनाएँ प्रसिद्ध है। इनमें केवल द्रव्य संग्रह को छोड कर ___ गोम्मटसार कर्मकाण्ड (गाथा न ६६८ तथा ६६६) म शेष चार रचनाओ-गोम्मटसार, लब्धिसार और चामुण्डराय के द्वारा 'गोम्मट जिन' की प्रमिा की स्थापना वलोक्यसार (त्रिलोकमार) की रचना का उल्लेख हैका निर्देश है। अत: यह निश्चित है कि गोम्मटसार की "श्रीमद्गोमटलब्धिसारविलसत्त्र नोक्पमारामरसमाप्ति गोम्मट-प्रतिमा की स्थापना के पश्चात् हुई। किन्तु माजश्रीसुग्धेनुचिन्तितमणीन् श्रीनेमिचन्द्रोमुनि. ॥" मूर्ति के स्थापनाकाल को लेकर इतिहासज्ञो मे बडा मतभेद इमी प्रकार द्रव्य-सग्रह की अन्तिम गाथा में मुनि है। बाहुबलि चरित्र में "कल्पयब्दे षट्शताख्ये..." इत्यादि नेमिचन्द्र द्वारा उसकी रचना किए जाने का उल्लेख हैश्लोक मे चामुण्डराज द्वारा वेल्गुल नगर मे 'गोमटेश' की “दवसगहमिण मुणिणाहा..."णेमिचन्द्र मुणिणा भणिय ज" प्रतिष्ठा का समय कल्कि सवत् ६००, विभव सवत्सर,
-(द्रव्यसग्रह ५८) चैत्र शुक्ल पंचमी, रविवार, कुम्भ लग्न, सीमाग्य योग, गोम्मटसार-- मस्त (मृगशिरा) नक्षत्र, बताया है।
नाम--इम ग्रन्थ के चार नाम पाए जाते है-गोम्मट किन्तु उक्त तिथि कब पड़ती है इस सबंध मे अनेक सगहसुत्त, गोम्मटमुत्त, गोम्मटसार और पंचसग्रह । मत है। प्रो० एस० सी० घोषाल ने ज्योतिष शास्त्र द्वारा गोम्मटसंगहसूत्त एवं गोम्मटमुत्त नामों का प्रयोग स्वय परीक्षण के आधार पर उक्त तिथि को २ अप्रैल ६८० ग्रन्थकार ने कर्मकाण्ड की ६६८वी तथा ६७२वी गाथाओं माना है।
मै किया है। गोम्मटसार नाम का प्रयोग अभयचन्द्र ज्योतिषाचार्य डॉ० नेमिचन्द्र जी, भारतीय ज्योतिष् सिद्धान्त चक्रवर्ती ने अपनी मन्दप्रबोधिनी टीका में किया के अनुसार उक्त तिथि, नक्षत्र, लग्न, सवत्सर आदि को है। इसी टीका मे ग्रन्थ का नाम पंचसंग्रह भी उपलब्ध १३ मार्च सन् १८१ मे घटित मानते है ।
होता है। प्रो० हीरालाल जी के अनुसार २३ मार्च १०२८ सन् पंचसग्रह, नाम का कारण बताते हुए प्रो० घोषाल' में उक्त तिथि वगैरह ठीक घटित होती है। किन्तु शाम ने लिखा है कि इसमे, बन्ध, बन्ध्यमान, बन्धस्वामी, बन्धशास्त्री ने उक्त तिथि को ३ मार्च १०२८ सन् बताया है। हेतु और बन्धभेद इन पांच बातो का संग्रह होने के
एस० श्रीकण्ठ शास्त्री 'कल्क्यब्दे' के स्थान पर कारण ही इसका नाम पचसग्रह है। सिद्धान्त शास्त्री