Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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अभिनन्दनीय वृत : सौभाग्य मुनि 'कुमुद' | १५
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दिखाई दिया। विहार के अवसर पर मीलों तक जैन ही नहीं अजैन भी साथ थे। बिछुड़ने का गम उन्हें अधिक सता रहा था । धर्म क्रियाओं में जैनों के साथ अजनों ने भी भाग लिया। उपवास, तेले, पांच और अठाई तक की तपश्चर्याएं अजैनों में भी हुई। धर्म की यह सार्वभौम दृष्टि बड़ी आह्लाददायिनी थी। अभिनन्दन एक कर्मठ सन्त का
मरुधरकेसरी श्री मिश्रीलालजी महाराज भारत-विश्रुत एक कर्मठ सन्त हैं। मारवाड़ की अनेक शिक्षण तथा सेवा संस्थाएँ इनकी देन हैं । व्यवहार में बड़े प्रखर होकर भी केसरीजी हृदय से मधुर तथा बुद्धि से बड़े दूरद्रष्टा हैं। मारवाड़ी भाषा के अच्छे कवि और आला दर्जे के साहित्यकार हैं । केसरीजी का गुरुदेव के प्रति बड़ा हादिक स्नेह, दोनों की मैत्री अगाध है। उनकी दीक्षा-स्वर्णजयन्ती पर चतुर्विध संघ ने उनके अभिनन्दन का समायोजन किया और प्रवर्तक श्री को निमन्त्रण मिला तो मुनि-मण्डल सहित गुरुदेव ने सोजत पहुँचकर अपने परम मित्र तथा अग्रज का हार्दिक अभिनन्दन किया । वहाँ मरुधरा के कई सन्त सतीजी से मिलने का सुन्दर सुयोग मिल गया। उस वर्ष पुन: मेवाड़ पहुँचकर भादसौड़ा चातुर्मास किया। विग्रह भंग और चातुर्मास
भादसौड़ा से डूंगला की तरफ प्रवास हुआ । वहाँ सामाजिक एकता भंग थी। तड़ थी और वह भी भयंकर। गुरुदेव श्री के सदुपदेश से एकता बनी और उसी वर्ष वहाँ चातुर्मास भी हो गया। संघ ने सेवा का अच्छा लाभ उठाया। इसके बाद का चातुर्मास कोशीथल हुआ। संस्कार निर्माण की तरफ
डूंगला चातुर्मास के बाद सांडेराव सम्मेलन का समायोजन था। उधर होकर गुरुदेव श्री मेवाड़ पधारे और मोलेला चातुर्मास किया । मगरा प्रान्त में सांस्कारिक परिवर्तन की बड़ी आवश्यकता को स्वीकार कर उस तरफ कुछ करने का गुरुदेव का इशारा हुआ। धर्मज्योति परिषद् ने अपना शाखा कार्यालय स्थापित कर पूरे प्रदेश में पन्द्रह जैन शालाओं की स्थापना कर दी। एक बहुत सुन्दर पुस्तकालय भी मोलेला में स्थापित हुआ। अनेकों उपकारों के साथ गुरुदेव ने पूरे मगरा प्रान्त का प्रभावशाली विचरण किया। मुनिद्वय अभिनन्दन-समारोह में
मारवाड़ में जयमल्लजी महाराज की सम्प्रदाय का अपना विशिष्ट स्थान है। समाज को इस सम्प्रदाय से कई रत्न मिले । वर्तमान में यह सम्प्रदाय संघ में सम्मिलित है।
स्वामीजी श्री व्रजलालजी महाराज, पण्डित रत्न श्री मिश्रीमलजी महाराज 'मधुकर' इसी सम्प्रदाय की देन हैं । दोनों मुनिराज मरुधरा के रत्न और जैन समाज के सितारे हैं। गुरुदेव श्री से इनका भी प्रगाढ़ प्रेम व्यवहार चला आया है। इनके अभिनन्दन की योजना पर निमन्त्रण मिला। तब स्वास्थ्य बराबर नहीं था। फिर भी आत्मीयता का समादर कर गुरुदेव ब्यावर पधारे और अपने आत्मीय-जनों का अभिनन्दन कर हर्षित हुए। उस वर्ष आमेर चातुर्मास किया। साम्प्रदायिक सौहार्द
__मेवाड़ के तेरापंथी क्षेत्रों में आमेट का अपना महत्त्वपूर्ण स्थान है। तेरापंथ समाज के २५० से अधिक परिवार रहते हैं। स्थानकवासी लगभग ३०-४० होंगे। किसी जमाने में आमेट साम्प्रदायिकता का बड़ा गढ़ था । इसका प्रमाण पूज्य श्री नृसिंहदासजी महाराज की ढाल से लगता है। ढाल रोडजी स्वामी के जीवन पर बनी है। पद्य है :
आमेट स्वामी पधारिया जी उतर्या हाटां के माय ।
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