Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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१४ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज-अभिनन्दन ग्रन्थ
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दया के लिये होता है। जैन मुनि उन्हीं के अनुचर हैं। उनके उपदेशों में दया और करुणा की धारा बहे तो आश्चर्य ही क्या?
ब्यावर चातुर्मास में प्रवर्तक श्री विविध अवसरों पर करुणा का ऐसा सन्देश दिया कि नागरिकों में जीव दया का नया वातावरण तैयार हो गया। पर्युषण और दीर्घ तप के अवसर पर कत्लालय नितान्त बन्द ही नहीं रहे, कत्ल को लाये गये पशुओं को बचाकर उन्हें अभयालय में पहुंचा दिया । चातुर्मास भर में लगभग चार सौ जीवों को अभयगंगा में नहला दिया गया ।
ब्यावर के इतिहास में जीव दया का यह प्रसंग अनुपम था। इसके बाद वाला चातुर्मास बदनौर हुआ। संघ ऐक्य बना रहा
सं० २०२३ में दो श्रावण थे। चातुर्मास में जब अधिक मास हो तो संवत्सरी कब करना ? इस विषय पर सादड़ी सम्मेलन में अच्छी तरह निर्णय लिया जा चुका था । किन्तु आग्रह बड़े भयंकर हुआ करते हैं ।
सादड़ी में संवत्सरी पर जितना स्पष्ट और सर्वसम्मत निर्णय लिया उतना ही जब-जब इसके विधिवत् पालन का अवसर आया, यह अस्पष्ट और उलझावपूर्ण बनाया जाता रहा । जोधपुर चातुर्मास के अवसर पर भी ऐसे प्रयत्न चल रहे थे किन्तु संघ ने बहुत ही स्पष्टता के साथ श्रमण संघ के नियमानुसार भाद्रपद मास में संवत्सरी मनाई । उस अवसर पर जोधपुर संघ ने जो संघ-प्रेम प्रकट किया, वह सर्वदा याद रहेगा। श्री माधोमलजी लोढा (मन्त्री श्री व० स्था० जैन श्रावक संघ) जैसे कर्मठ कार्यकर्ता संघ-ऐक्य के प्रबल पक्षधर बने रहे। उन्होंने श्रमण-संघ के निर्णय का समर्थन ही नहीं किया, अपितु सारे संघ को एक साथ रखकर एकता और प्रशासन का सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत किया। सखेद लिखना पड़ रहा है कि अभी कुछ दिनों पूर्व ही श्री लोढाजी का देहावसान हो गया । अब उनकी और अधिक आवश्यकता थी। किन्तु काल को कौन टाल सकता है ?
लोढाजी जैसे दस-बीस व्यक्तित्व समाज के मंच पर आ जाए तो आज भी समाज की निराशा कट सकती है। कल्पवृक्षोद्गम
जोधपुर से नागौर तक विचरण कर गुरुदेव मेवाड़ की ओर मुड़े। भूपालगंज (भीलवाड़ा) संघ का चातुर्मास हेतु तीव्र आग्रह था । सोजत होकर सादड़ी पधारे । वहाँ एक मकान को लेकर संघ में कड़ा संघर्ष था । मुकदमे चल रहे थे। गुरुदेव के सदुपदेश से टंटा टूट गया । चातुर्मास भूपालगंज रहा।
समाज में किसी सेवा-संस्था की बड़ी कमी अनुभव की जाती रही थी। भूपालगंज में गुरुदेव श्री के सान्निध्य में धर्म ज्योति परिषद् के रूप में इस कमी की पूर्ति करने का प्रयास सफल हुआ। धर्मज्योति परिषद् मेवाड़ प्रान्त की एक ऐसी सेवा-संस्था है, जिसे कल्पवृक्ष कह सकते हैं। पिछले कई वर्षों से यह संस्था सेवारत है। लोकप्रिय सन्त एक कहावत है
जात पाँत का जानै न कोई। हरि को भजे सो हरि का होई ।। जो धर्मानुरागी है, वही धर्मी है; जो सन्त-प्रेमी है, वही भक्त है; इसमें जाति-भेद कहीं नहीं। रेलमगराश्रावक संघ, जहाँ केवल आठ स्थानकवासी परिवार हैं, चातुर्मास का भरपूर आग्रह लेकर आया । सामान्यतया उनकी जो भी विनती सुनता मुस्कुराकर रह जाता । घरों की अल्पता, सीमित साधनों को देख किसे भी चातुर्मास की स्वीकृति की सम्भावना नहीं हो पाती थी। किन्तु गुरुदेव, जोकि स्थूल से हटकर सूक्ष्म के द्रष्टा हैं, कि भावोमियों को देखकर स्वीकृति प्रदान करने में तनिक भी नहीं हिचकिचाये। रेलमगरा-चातुर्मास की सार्वजनीनता को आप इससे आंक सकते हैं कि अनुयायियों के इतने कम घर होने पर भी व्याख्यानों में सैकड़ों की भीड़ बनी रहती थी। हजारों दर्शनार्थियों के आवागमन को रेलमगरा की जनता ने हार्दिक स्नेह के साथ सँभाला। धर्मज्योति परिषद् के विशाल अधिवेशन के अवसर पर सैकड़ों अजैन स्वयंसेवक अपनी हार्दिक सेवाएं दे रहे थे। बलि बंदी के कार्यक्रमों में जैनों से अधिक अजैनों का उत्साह
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