Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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अभिनन्दनीय वृत्त : सौभाग्य मुनि 'कुमुद' | १३
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स्वीकृति प्रदान की। वह नगर धन्य हो गया । इधर बदनौर के मुस्लिम समाज ने मस्जिद में एकत्रित होकर एक प्रतिज्ञा पत्र लिखा जिस पर सबों ने हस्ताक्षर किये । उसमें, बकरा ईद पर जब मुस्लिम समाज में आमतौर पर हिंसा होती है, हिंसा न करने की प्रतिज्ञा थी और वह प्रतिज्ञा-पत्र गुरुदेव के चरणों में प्रस्तुत कर दिया तथा चातुर्मास की मांग रखी । बड़ा उपकार देख गुरुदेव ने चातुर्मास की स्वीकृति बदनौर संघ को दी । गुरुदेव श्री भारमलजी महाराज से अलग चातुर्मास का यह प्रसंग आया और उसी वर्ष श्रावण कृष्णा अमावस्या को राजकरेड़ा में भद्रमना गुरुदेव श्री भारमलजी महाराज का स्वर्गवास हो गया। जीवन भर सेवा में रहने के उपरान्त अन्तिम समय की यह दूरी आज भी मुनिश्री के कोमल मन में कसक पैदा कर दिया करती है। बदनौर चातुर्मास के उस महान् उपकार के समक्ष यह कसक यद्यपि कोई महत्त्व नहीं रखती, किन्तु गुरु के साथ अनन्य भाव से रमने वाले के लिये उसे भुलाना आसान नहीं होता। उस समय सं० २०१८ चल रहा था।
अगले वर्ष का चातुर्मास रायपुर तथा उसके बाद देलवाड़ा वर्षावास हुआ। अजमेर को
सादड़ी में अथक श्रम कर जिस संघ रूपी कल्पवृक्ष को खड़ा किया था, वह किन्हीं साम्प्रदायिक कारणों से अब तक जर्जर-सा होने लग गया था । सादड़ी में बड़ी उमंगों के साथ संघ में मिले कुछ साथी बिछुड़ गये, कई आन्तरिक असन्तोष जता रहे थे । कुछ समस्याएँ वास्तव में थीं। कुछ खड़ी करदी गई थीं। ऐसी स्थिति में संघ के नवीनीकरण की महती आवश्यकता प्रतीत होने लगी। उस आवश्यकता की देन अजमेर सम्मेलन (द्वितीय) था।
प्रतिनिधि मुनिराजों का समागम हुआ । गुरुदेव मन्त्रीपद पर थे, वे भी अजमेर पहुंचे। __ बड़ी विस्तृत चर्चाएं चलीं, गण-व्यवस्था प्रारम्भ की गई । मन्त्रीपद प्रवर्तक के रूप में परिवर्तित किया । कई और भी महत्त्वपूर्ण निर्णय लिये गये । किन्तु ऐसा लगा, वातावरण में ऐक्य के प्रति जैसी उमंग चाहिए, वैसी नहीं थी। मनोवृत्ति कुछ ऐसी लग रही थी कि संघ में और बिखराव नहीं आने पाये, ऐसा कुछ कार्य हो जाना चाहिए। केवल रक्षात्मक रुचि ही वहाँ देखने में आई, जो किसी भी संघ के लिये परिपूर्ण नहीं हो सकती। गुरुदेव भी जो मन्त्री थे, यहीं से प्रवर्तक कहलाने लगे। पूरे सम्मेलन के कार्यक्रमों में प्रवर्तक श्री का आत्मिक सहयोग रहा। उस वर्ष ब्यावर चातुर्मास किया। अभय गंगा
वीतराग सत्पुरुषों का उपदेश "सव्व जग जीवजोणी रक्खणट्टाए दयट्ठाये।"-सभी जीवों की रक्षा और
१. प्रतिज्ञा-पत्र की प्रतिलिपि
श्री अनुनय पत्र
दि. १३-४-६५ परम पूज्य महामहिम श्रद्धेय श्री अम्बालालजी महाराज साहब
प्रवास बदनौर हम मुस्लिम धर्मावलम्बी नगरवासी बदनौर की हार्दिक आकांक्षा है कि आज हमारे महान् धार्मिक पर्व ईद के दिन प्रतिवर्ष की भांति आज का दिन मनाया है इस अवसर पर भगवान महावीर का जन्म-दिवस जो कि आज है इस अवसर को मनाने के लिये हमने हिंसा नहीं करके जयन्ति मनाने का संकल्प किया। इसी प्रकार यदि श्रीमान् ने बदनौर इस वर्ष चातुर्मास फरमाया तो हम विश्वास दिलाकर प्रतिज्ञा करते हैं कि बकरा ईद के दिन कभी हिंसा नहीं कर आज के संकल्प को बराबर निभायेंगे ।
दस्तखत-दिलावरखाँ, रमजूखाँ, अकबरखाँ, अलिखाँ, रमजानअली, सुलेमान, नूरखाँ, गफूर मोहम्मद, मांगुखाँ, रमजुद्दीन अलाबक्ष, इमामुद्दीन, अजाबक्ष, रमजानखाँ, नजीरखाँ, खाजूखाँ, खाजु, बसीरखां, अमराव, महबूब, लालखाँ, समसुद्दीन।
नोट-कुछ हस्ताक्षरों को पढ़ नहीं सके।