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भारत की विराट आत्मा
महान भारत का अतीत युगीन मानचित्र उठाकर देखते हैं, तो उसमें भारत की विराट आत्मा के दर्शन होते हैं । भारत के गौरवपूर्ण अतीत के इतिहास को पढ़ने वाले भली-भाँति जानते हैं, कि इस युग के भारत का क्षेत्रफल कितना विशाल और कितना विराट था ? आज का पाकिस्तान ही नहीं, उसे भी लाँघ कर आज के काबुल के अन्तिम छोरों तक भारत का जन-जीवन प्रसार पा चुका था । केवल भूगोल की दृष्टि से हो उस युग का भारत विस्तृत और महान नहीं था, बल्कि विचारों की उच्चता में, सभ्यता के प्रसार में और अपनी संस्कृति तथा धर्म के फैलाब में भी भारत महान और विराट था । उस युग के भारत का शरीर भी विशाल था और उसकी आत्मा भी विराट थी । आज का भारत क्या पूछते हो तुम आज के भारत की बात ? वह देह से भी छोटा और ओछा होता जा रहा है और विचारों से भी बोना बनता चला जा रहा है । यह एक खतरा है ।
मैं आपसे भारत की विराटता की बात कह रहा था । परन्तु, प्रश्न यह है, कि वह विशालता और विराटता कहाँ से आयी और कहाँ चली गई ? प्रश्न के समाधान के लिए हमें विचार महासागर के अन्तस्तल का संस्पर्श करना होगा ।
जन जीवन की संस्कारिता और समुज्ज्वलता किसी भी देश की शिक्षा और दीक्षा, आदेश और उपदेशों पर निर्भर रहा करती है । पुरातन
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