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१५० अमर भारती
शान्त नागरिक बेदर्दी के साथ मौत के घाट उतार दिए गए हैं। हजारों माताओं और बहनों की प्रतिष्ठा मिट्टी में मिला दी गई है, हजारों मासूम बच्चों के रक्त से भालों की नोंके रंगी गई हैं, हजारों बलात् धर्म-परिवर्तन के रूप में भेड़-बकरियों के समान इधर-उधर कैदियों-सा जीवन बिता रहे हैं। लाखों की लागत के गगनचुम्बी महल आज राख के ढेर हैं, जिनमें न जाने कितने-कितने जीवित जले हुए अभागे मानवों की लाशें दबी पड़ी होंगी ।
मैं आज समस्त भारतवासियों से, विशेषतः जैन धर्मावलम्बियों से प्रश्न पूछना चाहता हूँ कि आप लोग इस भयंकर स्थिति में दीपमालिका का उत्सव कैसे मनाएँगे ? पुरानी पगडण्डी बदलना है या उसी पर चलना है ? भगवान महावीर का पवित्र निर्वाणोत्सव अबकी बार दूसरी तरह ही मनाना होगा । यदि आप जैन हैं और आपमें कुछ भी जैनत्व का अंश है, तो करुणा अमृतधारा बहाकर ही दीपमालिका मनाई जाएगी।
गुजरानवाला, स्यालकोट, रावलपिंडी, पशरूर और लाहौर आदि क्षेत्रों के सुविशाल जैन संघ आज पूर्ण रूप से बर्बाद हो चुके हैं । करोड़ों की सम्पत्ति अपनी आँखों के सामने गुण्डों के हाथों लुटती देखते रहे, कुछ भी तो नहीं बचा सके ।
मैं लाहौर के एक श्रीमन्त को खूब अच्छी तरह जानता हूँ, कितना धनी मानी परिवार का स्वामी था वह ? परन्तु पाकिस्तान से जब वह दर्शन करने यहाँ आया, तो मैं उसकी दारुण दयनीय दशा को देखकर विकम्पित हो उठा। जब उसने अन्तर- वेदना में यह कहा कि महाराज ! यह क्रूरता अमृतसर और लाहौर वालों की ही हुई है । मेरी आँखें आंसुओं से छलछला आई, हृदय वेदना से तड़फ उठा । कोई भी मनुष्य जिसके शरीर में दिल हो और दिल में दर्द हो, वह इस प्रकार के करुण दृश्य से मर्माहत हुए बिना नहीं रहेगा । एक क्या, अनेक घटनाएँ ऐसी हैं, जो पत्थर को भी पिघला देने वाली हैं । पाकिस्तान के अत्याचारों से प्रताड़ित धर्म-बंधुओं की दर्द भरी कहानी, उनके मुंह की अपेक्षा उनका शरीर ज्यादा अच्छी तरह व्यक्त करता है, यदि कोई आँख खोलकर देख सके तो आज उन लक्षाधिपतियों के पास आँखों में आँसू और मर्म वेदना के अतिरिक्त ओर है ही क्या ?
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