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१७२ अमर भारतो
एक बार हम विहार करते हुए जा रहे थे। सड़क के बीच में एक बड़ा-सा पत्थर पड़ा हुआ था। कितने ही यात्री आए और दष्टिपात करते हुए आगे निकल गए । इतने में एक बैलगाड़ी आई । गाड़ी का पहिया पत्थर से टकराने पर गाड़ीवान भी 'किस शैतान ने सड़क के बीच में पत्थर डाल दिया है' आदि गालियां सुनाता हुआ आगे निकल गया, किन्तु उससे इतना नहीं हो सका कि उस रास्ते के रोड़े को अलग कर दे।
यह एक छोटी-सी घटना है। इस प्रकार की घटनाएँ हमारे दैनिक जीवन में न जाने कितनी बार घटती हैं। हमारी जीवन गाड़ी के सामने बहुत से रोड़े आते हैं । हम उनकी आलोचना करते हुए चले जाते हैं, किन्तु उन्हें दूर करने का तनिक भी प्रयास नहीं करते । आज समाज में अछूत, जातिभेद, साम्प्रदायिकता आदि कई रोड़े जड़ जमाये हुए हैं, किन्तु हमारे अन्दर उन्हें उखाड़ फेंकने की भावना ही जागृत नहीं होती।
___ मैं आचार्य जिनदास महत्तर की वाणी का मनन कर रहा था। वह पद-पद पर रत्न और जवाहरात बिखेरते हुए चले गए हैं। एक जगह उन्होंने कहा है
"संतं वीरियं न निगृहितध्वं, संते वीरिए न आणाइयव्वो" ___ यदि तुम्हारे अन्दर शक्ति है, प्रकाश है, तो उसे छुपाने का प्रयत्न मत करो । अपनी शक्ति का गोपन करना एक भयंकर सामाजिक पाप है। चाहे हम जिनदास की वाणी का अध्ययन करें अथवा भगवान् महावीर की वाणी का पैनी दृष्टि से अनुशीलन करें, सबके मूल में यह दिव्य सन्देश रहा हुआ है।
आज जनतन्त्र दिवस है। आज हमें अपने जीवन को राष्ट्र का, प्राणी-प्राणी का जीवन बनाना है। हमें इस ढंग से कार्य करना है, जिससे हमारे जीवन को, हमारे कार्य को, हमारी भाषा को देखते ही विश्व के प्रत्येक कोने का मानव कह उठे-“यह सर्वतन्त्र स्वतन्त्र जनतन्त्र भारत का सच्चा नागरिक है" ऐसे जनतन्त्र को ही हम सच्चा जनतन्त्र कह सकते हैं। जैन भवन लोहामण्डी आगरा
२६ जनवरी १९५०
OSOS
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