Book Title: Amarbharti
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 209
________________ मन की महत्ता ( १ ) जोवन की प्रिय मधुशाला में, मधु-रस की कुछ कमी नहीं है । पीओ और पिलाओ जी-भर, लघु मन करना ठीक नहीं है ॥ ( २ ) मन की लघुता जैसा कोई, जग में दूजा पाप नहीं है । और, महत्ता जैसा कोई, अन्य सुपावन पुण्य नहीं है । जागृत जीवन ( १ ) जीवन का पथ 'पंकिल - पथ है, संभल-संभल कर चलना । क्षण-क्षण, पल-पल जागृत रहना, हो न कभी कुछ स्खलना ॥ ( २ ) सुख-दुःख दोनों क्षणभंगुर है, क्या हंसना, क्या रहो अकर्म, कर्म - रत रह कर, मन का कलिमल धोना ॥ Jain Education International रोना । For Private & Personal Use Only उपाध्याय अमर मुनि www.jainelibrary.org

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