Book Title: Amarbharti
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 208
________________ शक्ति का अजस्र स्रोत : संघटन १६६ हमारी श्रद्धा बढ़ेगी, उतनी शीघ्रता से ही यह श्रमण संघ सुघड़ सुदृढ़ बनता रहेगा । आलोचकों के अग्निबाण, निन्दकों के अणुबम्ब और स्वार्थ रत जनों को दुरभिसन्धि-ये ही हमारे घर के चिराग हैं, जिनसे इस संघ में आग भभकते शोले उठ सकते हैं । जब तक हमारे दिल और दिमाग मध्ययुगीन भावनाओं से रंगीन बने रहेंगे, तब सक हमारा सही अर्थ में अभ्युस्थान, विकास और प्रगति सम्भव नहीं । प्रसन्नता है, कि हम अपने धूमिल मध्य युग से निकलने का प्रयत्न कर रहे हैं। हमारा वर्तमान आशा पूर्ण है और भविष्य समुज्ज्वल प्रतीत होने लगा है । हमारे वर्तमान के पन्ने पर भविष्य की सुनहली स्याही से वही व्यक्ति महत्वशाली रूप में अंकित होगा जो अपनी तीव्रतम श्रद्धा से, निष्ठा से श्रमल संघ का पोषण करेगा, उसके प्रति वफादार रहेगा। श्रमण और श्रमणी, श्रावक और श्राविका-ये जब अपने आप में परिसीमित होने की चेष्टा करते हैं, तब वे व्यक्ति होते हैं और जब ये अपना अपनत्व भूलकर समवेत होने का प्रयत्न करते हैं, तब ये समाज होते हैं, संघ होते हैं। जिस महत्वपूर्ण कार्य को एक व्यक्ति अपने सम्पूर्ण जीवन में भी नहीं कर पाता, संघ उसको सहज ही में कर लेता है। संघ शक्ति का एक अजस्र-स्रोत है। हमारा प्राचीन इतिहास बताता है कि संघ के अभ्यु.. दय के लिए बड़े से बड़े व्यक्ति को भी अपनी निजी इच्छा को छोड़कर संघ की इच्छा पर चलना पड़ता है । इतना अनुशासन यदि हम में हो, तो फिर हमारा यह श्रमण-संघ कभी मिट नहीं सकेगा। वह सतत हमें प्रेरणा, स्फूर्ति और आगे बढ़ने का बल प्रदान करता रहेगा। हम सब मिलकर संघ के सघन वृक्ष की शीतल-छाया में और सुरभित पवन में आनन्द, शान्ति और सुख पा सकेंगे। जोधपुर सिंहपोल २१-६-५३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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