Book Title: Amarbharti
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 206
________________ शक्ति का अजस्र स्रोत : संघटन १६७ युग में हम फिर एकत्व की ओर लोट रहे हैं । प्रथम युग हमारा शानदार रहा है, मध्य युग में हम विभक्त होते-होते बहुत क्षीण और बौने हो गए हैं । ८४ गच्छ, २२ सम्प्रदाय, तेरह पन्थ और बीस पन्थ - यह सब हमारा विकृत मध्य युग है । यह ठीक है, कि समाज में जब-जब सुधार का ज्वार उठता है और क्रान्ति का तूफान उमड़ता है, तब-तब समाज या संघ एकत्व से अनेकत्व की ओर बढ़ता है । क्योंकि सम्पूर्ण समाज न कभी सुधरा है और न कभी क्रान्तिशील ही बना है । ऐसी परिस्थिति में एक ही समाज में अनेक वर्गों का होना अस्वाभाविक नहीं कहा जा सकता । किन्तु जैसे एक ही सिक्के में दो बाजू होने पर भी उनमें किसी एक का वैषम्य नहीं होता, वैसे ही वैषम्य रहित समाज की कल्पना करना अनुचित तथा असम्भव नहीं है । एक ही नदी मध्य में पर्वत आ जाने से दो धाराओं में विभक्त हो सकती है, परन्तु उसका मूल स्रोत एक होने से वह एक ही रहेगी | आवश्यकता और विकास के लिए विघटन भी हमें कभी वरदान सिद्ध हुआ होगा । पर आज वह अभिशाप बनता नजर आ रहा है । आज समाज का विघटन नहीं, संघटन अपेक्षित हो रहा है । प्रत्यक्ष या परोक्ष जैन धर्म के सभी पन्थों में आज संघटन की चर्चा है । समाज - सरिता आज एकत्व की ओर बढ़ रही है । अभी विगत वर्ष में सैकड़ों सदियों से बिखरा स्थानकवासी समाज, एक विराट रूप में संघटित हो गया है । इस विशाल संघटन को श्रमणसंघ नाम दिया गया है । लोग इस श्रमण संघ कों विभिन्न दृष्टि बिन्दुओं से देखते हैं । कुछ कहते हैं - ''यह एक जादू जैसा हो गया है ।" कुछ का विचार है - "यह युग की माँग थी ।" कुछ बोलते हैं - " ऐसा होना था, हो गया ।" कुछ भविष्य वक्ता ऐसे भी हैं कि जो कहते हैं- "यह तो बालू का किला है, बच्चों का खेल जैसा है ।" जितने मुंह उतनी बातें होती हैं । मैं तो आज भी यही कहता हूँ कि हमने जो कुछ भी किया है, वह विचार पूर्वक किया है, निष्ठा पूर्वक किया है, साधना और तपोबल से किया है । लोग नुक्ता चीनी करें. आलोचना करें, कुछ भी क्यों न करें । पर हमें अपना कर्तव्य नहीं भूलना है । समाज में आज भी कुछ ऐसे तत्व हैं, जो अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए मनमानी और मनचाही करना चाहते हैं । समाज में विघटन पैदा करते हैं । इन सब से सावधान रह कर हमैं सतत आगे बड़ना है । सचेत रहना हमारा कर्तव्य हैं, पर रुकना हमारा काम नहीं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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