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१६० अमर भारती
श्रद्धा प्ररूपणा का हमें समन्वय करना ही होगा; सन्तुलन स्थापित करना ही होगा । आज न किया गया, तो कल स्वतः होकर ही रहेगा ।
आओ हम सब मिलकर अपनी कमजोरियों को पहिचान लें, अपनी दुर्बलताओं को जान लें और अपनी कमियों को समझ लें । फिर गम्भीरता से उन पर विचार कर लें। हम सब एक साथ विचार करें, एक साथ बोलें और एक साथ ही चलना सीख लें । हमारा विचार, हमारा आचार और हमारा व्यवहार सब एक हो ।
जीवन की इन उलझी गुत्थियों को हम एक संग, एक आचार्य, एक शिष्य परम्परा और एक समाचारी के बल से ही सुलझा सकते हैं । हमारी शक्ति, हमारा बल और हमारा तेज एक ही जगह केन्द्रित हो जाना चाहिए । हमारा शासन मजबूत हो, हमारा अनुशासन अनुल्लंघनीय हो । हमारी समाज का हर साधु फौलादी सैनिक हो और वह दूरदर्शी, पैनी सूझवाला तथा देशकाल की प्रगति को पहिचानने वाला हो !
इस आगामी सादड़ी सम्म्मेलन में यदि हम इतना काम कर सके, तो फिर हमें युग-युग तक जीने से कोई रोक नहीं सकता । हमारे विधान को कोई तिरस्कृत नहीं कर सकेगा। हमारी बिगड़ती स्थिति सुधर जाएगी । हम गिरते फिर उठने लगेंगे। हम रेंगते हुए फिर उठकर चलने लगेंगे, और फिर ऊँची उड़ान भी भर सकेंगे ।
आओ हम सब मिल कर सादड़ी सम्मेलन को सफल बनाने का पूरा-पूरा प्रयत्न करें, ईमानदारी से कोशिश करें । हमारी भावी सन्तान हमारे इस महान कार्य को बुद्धिमतापूर्ण निर्णय कह सके । हमारे इस जीवित इतिहास को स्वर्णाक्षरों में लिख सके । हमारी आने वाली पीढ़ी हमारे इस महान निर्णय पर गर्व कर सके । आने वाला युग हमारी यशोगाथा का युग-युग तक गान करता रहे । हमारा एक ही कार्य होना चाहिए कि हम सादड़ी में सब सफल होकर ही लौटें । सम्मेलन को सफल करना ही हमारा एकमात्र ध्येय है ।
सम्मेलन सादड़ी
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२४-४-५२
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