Book Title: Amarbharti
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 189
________________ १८० अमर भारती त्रित कर रहा है। वकील-वैरिस्टरों का मह थैलियों से भर कर वह यह कहलाना चाहता है कि उक्त कानून जैन साधुओं पर लागू नहीं होता। । परन्तु मेरा मन इस से दूर, बहुत दूर है । वह इस चीज का विरोध करता है । हमें अपनी समस्या को स्वयं सुलझाना है। साधु-समाज को अपना प्रश्न अपने आप हल करना है। आज का जैन साधु पर्दे की रानी बन चुका है। उस पर्दे की रक्षा के लिए समाज ढाल बन कर आगे बढ़ता है। किन्तु रक्षा का यह ढंग कभी भी सफल नहीं हो सकता। अपने भोजन और वस्त्र की समस्या को साधु समाज' स्वयं अपने ढंग से और अपने बलबूते से सुलझायेगा । आज से नहीं हजारों वर्षों से वह अपने तेज और पराक्रम से जीवित रहा है। उसका भिक्षा का पात्र बन्द नहीं हो सकता । यदि उसमें दम है, तो सरकार उसे भिक्षा से रोक नहीं सकती। __ महान विज्ञान-राशि आचार्य हरिभद्र ने भिक्षा तीन प्रकार की बतलाई है । करुणा, सर्वसम्पत्करी और पौरुषघ्नी, दीन दुःखी, अंग-प्रत्यंग हीन, अनाथ और जिनका जीवन संकटग्रस्त हो, ऐसे व्यक्तियों को भिक्षा देना, उनको सेवा करना समाज का अपना कर्तव्य है। यह दान, यह भिक्षा कारुण भिक्षा कहलाती है। ऐसी भिक्षा देना समाज का कर्तव्य होना चाहिए। जो भिक्षा पूज्य बुद्धि से, श्रद्धा और भक्ति से दी जाती है, वह सर्व सम्पत्करी भिक्षा कहलाती है । यह भिक्षा, साधु की भिक्षा है । वह, उसके अधिकार की भिक्षा है। वह पूज्य बुद्धि से दी जाने वाली भिक्षा है। ऐसी भिक्षा देना समाज का कर्तव्य ही नहीं, बल्कि धर्म है। और लेने वाला उसका पूरा अधिकारी है । साधु ने अपना समस्त जीवन समाज के कल्याण के लिए दे डाला है, उसके जीवन का प्रत्येक क्षण जनता के हिताय और सुखाय होता है, ऐसी स्थिति में, समाज उसे भोजन और वस्त्र देता है । वह दान नहीं, बल्कि उसका हक है, उसका अधिकार है। ___ अधिकार का अर्थ क्या है ? मैं आपसे पूछता है कि आप अपने मातापिता की सेवा करते हैं ? उन्हें खाने के लिए भोजन और तन ढकने के लिए वस्त्र देते हैं, तथा जीवन सम्बन्धी अन्य सामग्री भी आप उन्हें देते हैं। क्या आप उसे दान कहेंगे? नहीं, यह तो उनका अधिकार है। वह उसके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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