Book Title: Amarbharti
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 192
________________ r सम्मेलन के पथ पर साधु-सम्मेलन की शुभ बेला जैसे-जैसे समीप होती जाती है, वैसेवैसे हम साधु लोग उससे दूर भागने की कोशिश करते हैं । सानु-सम्मेलन से अर्थात् अपने ही सधर्मी और अपने ही संकर्मी बन्धुओं से हम इतने भयभीत क्यों होते हैं ? इस गम्भीर प्रश्न का उत्तर कौन दे सकता है ?. आज हमारे साधु-समाज में सामूहिक भावना का लोप होकर वैय - क्तिक भावना का जोर बढ़ता जा रहा है । हम समाज के कल्याणकर्म से हटकर अपने ही कल्याणबिन्दु पर केन्द्रित होते जा रहे हैं। शायद हमने भूल से यह समझ लिया है कि अपनी-अपनी सम्प्रदाय की उन्नति में ही समाज की उन्नति निहित है । इस भावना को बल देकर आज तक हमने अतनी समाज का तो अहित किया ही है, साथ में यह भी निश्चित है, कि हम अपना और अपनो सम्प्रदाय का भी कोई हित नहीं साध सके हैं । आज के इस समाजवादी धुग में हम अपने-आप में सिमिट कर अपना विकास नहीं कर सकते हैं । एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र के सहयोग के बिना आज जीवित नहीं रह सकता है, तब एक सम्प्रदाय, पूसरे सम्प्रदाय के सहयोग के बिना अपना विकास कैसे कर सकता है ? साधु-समाज को आज नहीं तो कल यह निर्णय करना ही होगा, कि हम व्यक्तिगत रूप में जीवित नहीं रह सकते । अतः हम सब को मिलकर संघ बना लेना चाहिए । ( १८३ Jain Education International ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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