Book Title: Amarbharti
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 164
________________ अपने आपको हीन समझना पाप है १५५ चारों ओर संसार का विपुल वैभव और भोग विलास की सामग्री अपने मोहक रूप में बिखरी पड़ी थीं, ३० वर्ष की इठलाती हुई तरुणाई में इन भोग-विलास और सोने के सिंहासन को ठोकर मारकर जन-कल्याण के लिए निकल पड़ा । उनका मन संसार की इन मोह माया की गलियों में न रमा, संसार की विषम स्थिति का भयावह हृदय उनकी आँखों के आगे रहरह कर नाचने लगा । उन्होंने देखा कि दुनिया कितनी ऊँची-नीची है । ' कोई सम्मान सत्कार से, धन से, वैभव से ऊँचा है, तो कोई अपमान, घृणा और दरिद्रता तथा जात-पांत को धधकती हुई प्रचण्ड ज्वाला में बुरी तरह झुलस रहा है । भगवान महावीर ने इस भेदभाव तथा घोर वैषम्य की खाई को पाटने का दृढ़ संकल्प किया और एक ऐसे नव समाज का निर्माण करना चाहा, जहाँ सबका स्तर एक हो, सब को सर्व विषयक समान अधिकार हों, न कोई ऊँचा हो और न कोई नोचा हो। "मानव-मानव एक है और अहिंसा एव सत्य सबका धर्म है ।" यह था उनका क्रान्तिशील नारा । उन्होंने अपनी विद्रोह भरी उदार वाणो में कहा - " मानव-मानव समान हैं, जात-पांत यदि माननी ही है, तो उसकी मूलभित्ति आचरण होना चाहिए, न कि जन्म । जन्म से तो न कोई यज्ञोपवीत धारण करके आता है, न कोई तलवार बाँधकर आता है और न किसी के हाथ में कलम या झाड़ ही होती है ।" भगवान ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यहाँ जन्म या जाति का कोई महत्व नहीं, यहाँ पूछ है आचरण की "सक्खं वुदीसइ तवोविसेसो, Jain Education International न दीसइ जाइविसेसो कोई । " मनुष्य की तो मनुष्य ही एक जाति है । गाय, भैंस, हाथी, घोड़े आदि जिनकी नस्लें अलग-अलग हैं, उनकी जाति का बोध नस्ल या आकृति मात्र से ही हो जाता है । किसी गधे या घोड़े से आज तक किसी ने यह प्रश्न नहीं किया कि आपकी क्या जाति है । इसी प्रकार मनुष्य की जाति के सम्बन्ध में भी मनुष्य से यह पूछना कि आप की जाति क्या हैं ? उसका घोर अपमान करना है और मानव जाति को छिन्न-भिन्न करने का दुष्प्रयत्न मात्र है । जरा विचार तो कीजिए कि कोई निम्न जाति का व्यक्ति अहिंसा, सत्य, संयम आदि का प्रश्रय लेकर यदि अपने निम्न जीवन स्तर से ऊँचा उठ जाता है, तो उसकी आत्मा ने कितनी भाव क्रांति एवं प्रबल साहस For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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