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अमर-भारती
देती है । मूल ज्योति 'महावीर' से ज्योतित होने वाली जीवन- ज्योतियों की एक लम्बी परम्परा आज तक चली आ रही है और चलती चली जाएगी । इन्द्रभूति, सुधर्मा और जम्बू की जीवन ज्योति के दिव्यालोक से आज भी श्रमण संस्कृति जन-मग कर रही है । संसार महासागर के ये महा-ज्योति स्तम्भ आज भी राह भटके मानवों को जीवन की सही दिशा की ओर संकेत कर रहे हैं ।
पर्युषण कल्प का महापर्व इस अमर सन्देश की आघोषणा करता है - " मानव, भोग- क्षोभ की विलास-विभ्रम की और सत्ता महत्ता की साज सज्जा में, तू सुख की कल्पना, समृद्धि की कल्पना तथा शान्ति की कामना मत कर, भूल मत जग की चमक-दमक में । जो पाना है, वह मिलेगा" अन्तस्तत्व के चिन्तन से, मन के मन्थन से और अपनी चित्तवृत्तियों के ग्रन्थन से ।"
आज न केवल व्यक्ति ही, सारा समाज और समूचा संसार भी अपनी समस्याओं से विकल है, परेशान और हैरान है । कहीं जातिगत विद्वेष की ज्वाला, कहीं प्रभुत्व की सत्ता का अनर्थकारी उन्माद और कहीं वर्ण-भेद एवं रंग-भेद का विभत्स नग्न नृत्य परेशान कर रहा है । वह भी इस युग मैं जबकि विश्व के एक कोने का स्वर दूसरे कोने में क्षणों में ही झंकृत हो उठता है । हमारे बाहरी प्रसार के साथ अन्तर का प्रसार भी विराट बनना चाहिए । पर्युषण कल्प की साधना मानव मन के कण-कण में विराट भावना को जागृत करती है ।
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