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मानव की महत्ता
मनुष्य का जन्म प्राप्त करना साधारण बात नहीं है ? बहुत लम्बी जन्म-मरण की यात्रा तय करते हुए मनुष्य का जन्म मिला है । पर, उसका सदुपयोग या दुरुपयोग करना, मनुष्य के पूर्ववत संस्कारों पर निर्भर होता है । मनुष्य अपने विचारों का प्रतिफल है । वह जैसा सोचता है, वैसा बन जाता है । उसका उत्थान और पतन उसके अपने हाथ में रहता है । शास्त्र या गुरुजन तो मात्र सहायक रहते हैं । उच्चतम विचार ही मनुष्य की अपनी थाती होती है ।
उच्च विचारक की प्रत्येक बात शास्त्र है । वस्तुतः शास्त्र है भी क्या चीज ? उच्चतम विचार राशि ही तो शास्त्र है न ? और उसका स्रष्टा कौन है ? नारकी, पशु या देवता उसका स्रष्टा नहीं हो सकता । उसका स्रष्टा है, मनुष्य । आप मेरी भावना को स्पर्श कर रहे होंगे ? मेरा अभिप्राय यह है कि शास्त्र का प्रणेता मनुष्य ही है और कोई नहीं । मनुष्य को विचार शक्ति मिली है, वह विचारशील है । निरुक्तकारों ने 'मनुष्य' शब्द की बहुत ही सुन्दर और गम्भीर निरुक्ति की है । आचार्य यास्क ने अपने निरुक्त-शास्त्र में लिखा है - " मत्वा कार्याणि विषीव्यत्ति, इति मनुष्यः - " जो सोच-समझकर कार्य करता है, वही मनुष्य कहलाता है ।"
हाँ, तो मैं आपसे कह रहा था कि शास्त्र - प्रणेता मनुष्य ही हो
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