________________
पत्रकार सम्मेलन में, उपाध्याय श्री अमर मुनिजी १०५ रूप यथानुरूप बदलता रहता है और आन्तरिक रूप शाश्वत है। धर्म का मूल रूप स्थिर है और बाहरी रूप परिवर्तनशील । इस प्रकार धर्म परिवर्तनशील भी है और अपरिवर्तनशील भी। . प्रश्न-स्वर्ग और नरक के विषय में आप के क्या विचार हैं ?
समाधान- स्वर्ग और नरक स्थान-विशेष रहें, इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं हो सकती। किन्तु, वे जीवन की स्थिति विशेष भी हैं-इससे इन्कार नहीं होना चाहिए।
प्रश्न-सुख और दुःख की वास्तविक व्याख्याएँ क्या हो सकती हैं ?
समाधान-सुख और दुःख की कोई निश्चित और निर्धारित व्याख्या करना आसान नहीं है । क्योंकि इस सम्बन्ध में विभिन्न व्यक्तियों के अनुभव विभिन्न होते हैं। एक का सुख दूसरे को दुःख रूप भी हो सकता है । और एक का दुःख दूसरे को सुख भी। अतः सुख-दुःख की कोई स्थिर व्याख्या नहीं की जा सकती। हाँ, सुख-दुःख की इतनी परिभाषा की जा सकती है कि अनुकूलता सुख है और प्रतिकूलता दुःख ।
संक्षेप में ये हैं, वे प्रश्न और समाधान, जो कविरत्न जी महाराज ने जोधपुर पत्रकार सम्मेलन में अभिव्यक्त किए थे।
जोधपुर कालेज
जनवरी १९५३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org