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जीवन : एक सरिता
कवि की अलंकृत भाषा में-"जीवन एक सरिता है।" सरिता की मधुर धारा सदा प्रवाहशील रहती है। प्रवाह रुकते ही उसकी मिठास जाती रहती है। उसका अस्तित्व ही मिट जाता है। अपने उद्गम स्थल से लेकर महासागर तक नित्य-निरन्तर बहते ही रहना, सरिता का सहज स्वभाव है। उससे पूछो कि तू सदाकाल बहती हो क्यों रहती है ? वह सहज स्वर में कहेगी-यह मेरा सहज धर्म है। मेरा प्रवाह रुका कि मैं मरी । जीवन संधारण के लिए बहते रहना ही श्रेयस्कर है । देखते नहीं हो, मानव ! मेरे कूल के आस-पास ये जो छोटे-बड़े ताल-तलैया हैं, उनके जीवन की क्या दशा है ! उनका निर्मल, स्वच्छ और मधुर जल अपने आपमें बन्द होकर सड़ने लगता है। गति न होने से, क्रिया न रहने से उनका जीवन समाप्त हो गया है। "आगे बढ़ो या मिट्टी में मिलो" यह प्रकृति का एक अटल और अमिट सिद्धान्त है । गतिशील जीवन का मूल मन्त्र है।
जो बात मैं अभी सरिता के सम्बन्ध में कह रहा था, मानव जीवन के सम्बन्ध में भी वह सिद्धान्त सत्य है। कवि की वाणी में जीवन एक सरिता है । जीवन को गतिशील रखना, क्रियाशील रखना, विकास का एक महान् तथ्यपूर्ण सिद्धान्त है। जीवन के विकास के लिए आवश्यक सिद्धान्त यह है, कि उसको रुकना नहीं चाहिए। जन्म से लेकर मृत्यु सीमा तक जीवन निरन्तर बहता ही रहता है । रुकने का अर्थ है, मृत्यु ।
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