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जीवन : एक सरिता
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और होंगे चरण हारे,
अन्य हैं जो लौटते,
दे शूल को संकल्प सारे ॥" सच्चा यात्री आगे बढ़ता है । उसके मार्ग में चाहे फूल बिछे हों, या शूल गड़े हों । वह अपने संकल्प का कभी परित्याग नहीं कर सकता। पथसंकटों को देखकर वापिस लौटना, वीरत्व नहीं है।
__ महावीर आगे बढ़े, तो बढ़ते ही रहे। अनेक अनुकूल और प्रतिकूल संकट, उपसर्ग और परीषह आए, पर महावीर कभी विचलित नहीं हुए। भक्त की भक्ति लुभा नहीं सकी और विरोधो का विरोध उन्हें रोक नहीं सका। इन्द्र आया, तो हर्ष नहीं, संवम आया, तो रोष नहीं। बढ़ते रहना उनके जीवन का संलक्ष्य था । संयम की साधना रुको नहीं। भक्तों की भक्ति की मधुर स्वर लहरी उस मस्त योगी को मोह नहीं सकी, और विरोध के रोध को वह देख नहीं सका । भुक्ति का त्यागी मुक्ति की खोज में चला, तो चलता ही रहा । वर्धमान की दृष्टि में फूल और शूल दोनों समान थे।
धन्ना का जीवन तो आपने सुना ही होगा। वह अपने जीवन में जितना वड़ा भोगी था, उससे भी महान् था, वह एक महायोगी । अपनी पत्नी सुभद्रा की बोली की गोली लगते ही वह सिंहराज जागृत हो गया। दिशा बदल ली, तो फिर कभी लौटकर भी नहीं देखा। नित्य-निरन्तर साधना के महामार्ग पर बढ़ता ही गया।
महापुरुषों के जीवन से हमें यही प्रेरणा मिलती है, सदा उत्साह और स्फूर्ति मिलती है । जीवन संग्राम में विराम की आशा स्वप्नवत् है । जीवन संघर्ष में सफल होने के लिए सातत्य यात्रा की आवश्यकता है। जीवन को सदा गतिशील रखो, चाहे एक कदम भर चलो, पर चलते ही रहो । यही सिद्धान्त है, लक्ष्य को प्राप्त करने का । जग जोता बढ़ने वालों ने । यह जगत् का एक अमर सिद्धान्त है । मैं आपसे कह रहा था कि जीवन एक सरिता है । उसका सौन्दर्य, उसका माधुर्य सदा गतिशील और क्रियाशील बने रहने में ही है।
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