________________
जीवन के राजा बनो : भिखारी नहीं
१२३
देगा | जीवन यात्रा की समाप्ति पर मनुष्य हँसता जाए और दूसरे रोते रहें और कहें कि आज परिवार, समाज और राष्ट्र की बड़ी क्षति हुई है । मनुष्य क्या था, वास्तव में देव था । उसने परिवार को स्वर्ग बनाया । राष्ट्र को स्वर्ग बनाया । यह एक सफल जीवन को व्याख्या है, सफल जीवन की परिभाषा है । और यदि मृत्यु के क्षणों में हम लोग रोएँ और संसार हँसे, तो यह हमारे जीवन की करारी हार है, एक बहुत बड़ी असफलता है ।
जलती आग में लकड़ी को डालो और सोने को भी । फिर देखो, क्या होता है ? लकड़ी का मुंह काला होगा और सोने की चमक-दमक बढ़ेगी - यदि वास्तव में वह सोना है, तो। जीवन में पहले तपो और फिर दमको - यह अमर सिद्धान्त है । जीवन सफलता का रहस्य यहीं पर है । दूसरों को सुखी करने वाला क्या कभी दुःखी रह सकता है ? कदापि नहीं । भारत का एक महान् दार्शनिक कहता है
"हरिरेव जगद् जगदेव हरिः । "
अपनी आत्मा को जगत् में देखने वाला और सम्पूर्ण जगत् को आत्मा में देखने वाला - कभी अपने जीवन में संक्लेश नहीं पा सकता । क्योंकि वह निरन्तर तप और जप से अपने जीवन को शुद्ध, निर्मल और पवित्र बनाता रहता है । जीवन की पवित्रता, जीवन की विमलता और जीवन की विशुद्धता ही जीवन की सर्वतोमुखी महान् सफलता मानी जाती है ।
पाली, मारवाड़
२०-१-५३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org