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जैन - संस्कृति की अन्तरात्मा
जैन संस्कृति, जन-जन की संस्कृति रही है । आचार की पवित्रता और विचार की विराटता जैन संस्कृति का मूल आधार है । यह संस्कृति गुणों के विकास को महत्व देती है। किसी भी जाति और कुल की ऊँचतानोचता को नहीं । जैन संस्कृति जाति, कुल, देश और धन के बन्धनों से मुक्त होकर जन-जन को भेद और विरोध से दूर हटाकर एकत्व और भ्रातृत्व का का सन्देश देती है । वह मानव को विराट और महान् बनाने की प्रेरणा करती है ।
मनुष्य का जीवन केवल उसी तक सीमित नहीं है, वह जिस समाज और राष्ट्र में रहता है, उसके प्रति भी उसका कर्तव्य है । कर्तव्य से पराङमुख होकर भागने में मनुष्य का गौरव नहीं है, उसका गौरव है हजारोंहजार बाधाओं को, रुकावटों को पार करके अपने कर्तव्य कर्म को जन कल्याण की भावना से करते जाना । इस निःस्वार्थ कर्म योग में यदि उसे जनता का स्वागत सत्कार मिले तो क्या ? और यदि चारों ओर से हजारहजार कण्ठ-स्वरों से विरोध मिले, तो भी क्या ?
मनुष्य अपने जीवन में अहिंसा, सत्य और सहयोग की भावना अपना कर ही अपना विकास कर सकता है । सम्प्रदायवाद, जातिवाद और वैरविरोध की नीति उसके विनाश के लिए है, विकास के लिए नहीं । जैन
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