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पंचशील और पंच शिक्षा
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उन्हें पंचशील कहा गया है । शील का अर्थ, यहाँ पर आचार है, अनुशासन है | पंचशील इस प्रकार है
१.
२.
३.
५.
४. ब्रह्मचर्य - मन से पवित्र रहो, तन से पवित्र रहो । विषय-वासना का परित्याग करो | ब्रह्मचर्य का पालन करो ।
१.
अहिंसा -- प्राणि मात्र के प्रति समभाव रखो । किसी पर द्वेष मत रखो | क्योंकि सबको जीवन प्रिय है ।
३.
सत्य - सत्य जीवन का मूल आधार है । मिथ्या भाषण कभी मत करो । मिथ्या विचार का परित्याग करो ।
अस्तेय दूसरे के आधिपत्य की वस्तु को ग्रहण न करो । जो अपना है, उसमें सन्तोष रखो ।
उत्तराध्ययन सूत्र के २३ वें अध्ययन में केशी - गौतम चर्चा के प्रसंग पर 'पंच- शिक्षा' का उल्लेख मिलता है | पंचशील और पंच शिक्षा में अन्तर नहीं है, दोनों समान हैं, दोनों की एक ही भावना है । शील के समान शिक्षा का अर्थ भी यहाँ आचार है | श्रावक के द्वादश व्रतों में चार शिक्षा व्रत कहे जाते हैं । पंच शिक्षाएँ ये हैं -
जैन पंच शिक्षा
४.
मद त्याग - किसी भी प्रकार का मद मत करो, नशा न करो। सुरापान कभी हितकर नहीं है ।
अहिंसा - जैसा जीवन तुझे प्रिय है, सबको भी उसी प्रकार । सब अपने जीवन से प्यार करते हैं । अतः किसी से द्वेष-घृणा मत करो । सत्य - जीवन का मूल केन्द्र है । सत्य साक्षात् भगवान है । सत्य का अनादर आत्मा का अनादर है ।
अस्तेय - अपने श्रम से प्राप्त वस्तु पर ही तेरा अधिकार है । दूसरे की वस्तु के प्रति अपहरण की भावना मत रख ।
ब्रह्मचर्य -- शक्ति सचय । वासना संयम । इसके बिना धर्म स्थिर नहीं होता । संयम का आधार यही है । यह ध्रुव धर्म है ।
५. अपरिग्रह - आवश्यकता से अधिक संचय पाप है । संग्रह में परपीड़न होता है । आसक्ति बढ़ती है । अतः परिग्रह का त्याग करो ।
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