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________________ पंचशील और पंच शिक्षा १०६ उन्हें पंचशील कहा गया है । शील का अर्थ, यहाँ पर आचार है, अनुशासन है | पंचशील इस प्रकार है १. २. ३. ५. ४. ब्रह्मचर्य - मन से पवित्र रहो, तन से पवित्र रहो । विषय-वासना का परित्याग करो | ब्रह्मचर्य का पालन करो । १. अहिंसा -- प्राणि मात्र के प्रति समभाव रखो । किसी पर द्वेष मत रखो | क्योंकि सबको जीवन प्रिय है । ३. सत्य - सत्य जीवन का मूल आधार है । मिथ्या भाषण कभी मत करो । मिथ्या विचार का परित्याग करो । अस्तेय दूसरे के आधिपत्य की वस्तु को ग्रहण न करो । जो अपना है, उसमें सन्तोष रखो । उत्तराध्ययन सूत्र के २३ वें अध्ययन में केशी - गौतम चर्चा के प्रसंग पर 'पंच- शिक्षा' का उल्लेख मिलता है | पंचशील और पंच शिक्षा में अन्तर नहीं है, दोनों समान हैं, दोनों की एक ही भावना है । शील के समान शिक्षा का अर्थ भी यहाँ आचार है | श्रावक के द्वादश व्रतों में चार शिक्षा व्रत कहे जाते हैं । पंच शिक्षाएँ ये हैं - जैन पंच शिक्षा ४. मद त्याग - किसी भी प्रकार का मद मत करो, नशा न करो। सुरापान कभी हितकर नहीं है । अहिंसा - जैसा जीवन तुझे प्रिय है, सबको भी उसी प्रकार । सब अपने जीवन से प्यार करते हैं । अतः किसी से द्वेष-घृणा मत करो । सत्य - जीवन का मूल केन्द्र है । सत्य साक्षात् भगवान है । सत्य का अनादर आत्मा का अनादर है । अस्तेय - अपने श्रम से प्राप्त वस्तु पर ही तेरा अधिकार है । दूसरे की वस्तु के प्रति अपहरण की भावना मत रख । ब्रह्मचर्य -- शक्ति सचय । वासना संयम । इसके बिना धर्म स्थिर नहीं होता । संयम का आधार यही है । यह ध्रुव धर्म है । ५. अपरिग्रह - आवश्यकता से अधिक संचय पाप है । संग्रह में परपीड़न होता है । आसक्ति बढ़ती है । अतः परिग्रह का त्याग करो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001352
Book TitleAmarbharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Epistemology, L000, & L005
File Size10 MB
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