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पंच शील और पंच शिक्षा १०७ आज की राजनीति में विरोध है, विग्रह है, कलह है, असन्तोष है और अशान्ति है । नीति, 'भले ही राजा की हो या प्रजा की, अपने आप में पवित्र है, शुद्ध और निर्मल है। क्योंकि उसका कार्य जग कल्याण है, जग विनाश नहीं । नीति का अर्थ है, जीवन की कसौटी, जीवन की प्रामाणिकता, जीवन को सत्यता । विग्रह और कलह को वहाँ अवकाश नहीं । क्योंकि वहाँ स्वार्थ और वासना का दमन होता है । और धर्म क्या है ? सबके प्रति मंगल भावना । सबके सुख में सुख-बुद्धि और सबके दुःख में दुःख-बुद्धि । समत्व योग की इस पवित्र भावना को धर्म नाम से कहा गया है। यों मेरे विचार में धर्म और नीति सिक्के के दो बाजू हैं। दोनों की जीवन-विकास में आवश्यकता भी है। यह प्रश्न अलग है कि राजनीति में धर्म और नीति का गठबंधन कहाँ तक संगत रह सकता है। विशेषतः आज की राजनीति में जहाँ स्वार्थ और वासना का नग्न ताण्डव नृत्य हो रहा हो ! मानवता मर रही हो!
बुद्ध और महावीर ने समूचे संसार को धर्म का सन्देश दिया-राजनीति से अलग हटकर, यद्यपि वे जन्मजात राजा थे। गांधीजी ने नीतिमय जीवन का आदेश दिया, राजनीति में भी धर्म का शुभ प्रवेश करायायद्यपि गाँधीजी जन्म से राजा नहीं थे। यों गाँधीजी ने राजनीति में धर्म की अवतारणा की। गांधीजी की भाषा में राजनीति वह जो धर्म से अनुप्राणित हो, धर्म-मूलक हो । जिस नीति में धर्म नहीं, वह राजनीति, कुनीति रहेगी। राजा की नीति धर्ममय होती है। क्योंकि भारतीय परम्परा में राजा न्याय का विशुद्ध प्रतीक हैं । जहाँ न्याय वहाँ धर्म होता ही है । न्याय रहित नीति नहीं, अनीति है, अधर्म है ।
आज भारत स्वतन्त्र है और स्वतन्त्र भारत की राजनीति का मूल आधार है- पंचशील सिद्धान्त । इस पंचशील सिद्धान्त के सबसे बड़े व्याख्याकार थे-भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू । भारत, चीन और रूस विश्व की सर्वतो महान् शक्तियाँ आज इस पंचशील सिद्धांत के आधार पर परस्पर मित्र बने हैं। गाँधी युग की या नेहरू युग की यह सबसे बड़ी देन है, संसार को। दुनिया की आधी से अधिक जनता पंचशील के पावन सिद्धान्त में अपना विश्वास ही नहीं रखती, बल्कि पालन भी करती है । यूरोप पर भी धीरे-धीरे पंचशील का जादू फैल रहा है।
मैं आपको यह बताने का प्रयत्न करूंगा कि पंचशील क्या है ? इसका
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