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अमर-भारती
लड़ाई तुझसे है, तेरे लड़के से और तेरे घर वालों से नहीं । यह बच्चा जैसा तेरा वैसा मेरा । यदि आज मैं इसके प्राणों की रक्षा नहीं करता, तो मेरी मानवता, दानवता में बदल जाती।"
___ मैं आपसे कह रहा था कि न जाने कब, मनुष्य के अन्तर में प्रसुप्त देवत्व और दानत्व जाग उडे ? मनुष्य की मनुष्यता की परीक्षा इसी प्रकार के प्रसंगों में होती है। इस घटना ने उन दोनों राजपूतों के जीवन के मोड़ को ही मोड़ दिया ! जहाँ पहले वैर, विरोध और घृणा की आग जल रहो थी, वहाँ अब स्नेह, सद्भाव और मैत्री की सरस सुन्दर सरिता प्रवाहित होने लगो । भगवान् महावीर ने और संसार के दूसरे महापुरुषों ने मनुष्य जीवन को 'देव प्रिय और दुर्लभ" कहा है, वह इसी प्रकार के मनुष्य जीवन की बात है । संसार में देहधारी मनुष्य तो करोड़ों और अरबों हैं, परन्तु अन्तर मन के सच्चे मनुष्य तो इस संसार में बिरले ही मिलते हैं।
____ मैंने अभी आपसे कहा था-मनुष्य का सबसे अधिक मूल्यवान धन है, उसका जीवन और उसके जीवन की सफलता का अमर आधार है, उसका पवित्र ध्येय । ध्येय के बिना जीवन में चमक-दमक नहीं आ पाती। मनुष्य जीवन का ध्येय क्या हो ? इस प्रश्न का समाधान उस मनुष्य की स्थिति और अवस्था पर अवलम्बित है। सेवा, भक्ति, परोपकार, दया, प्रेम" इन पवित्र भावों में से कोई भी एक भाव जीवन का ध्येय बन सकता है । आवश्यकता इस बात की है कि इन्सान को अपना एक ध्येय स्थिर कर लेना चाहिए और उसी के अनुसार अपना जीवन यापन करना चाहिए। क्योंकि ध्येय बिना का जीवन एक जड़ जीवन है, निष्क्रिय जीवन है।।
__ कल्पना कीजिए, एक व्यक्ति अपने मित्र को पत्र लिखता है। एक कार्ड लिखता है । कार्ड बड़ा मजबूत और सुन्दर है। बेल-बूटे भी उस पर हो रहे हैं । आर्ट पेपर का चिकना कार्ड है । सुन्दर अक्षरों में सुन्दर बनावट से लिखा गया है। लिखने में और अनेक रंग की स्याही से उसे सज्जित करने में पर्याप्त श्रम किया है, परन्तु उस पर भेजने वाला व्यक्ति भेजने के स्थान का पता लिखना भूल गया है। मैं आपसे पूछु कि क्या यह कार्ड अपने लक्ष्य पर पहुँच सकेगा ? कभी नहीं । वह तो लेटर वाक्स से निकलते ही डैड औफिस में डाल दिया जाएगा। कार्ड का आर्ट पेपर, रंग-बिरंगी स्याही और लिखने की सुन्दर कला, क्या काम आई ?
यही स्थिति मनुष्य जीवन को भी है । लम्बा-चौड़ा शरीर हो, गौर
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